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________________ आप्तवाणी-३ १७९ प्रश्नकर्ता : तब फिर मुझे उन्हें कुछ भी नहीं कहना चाहिए? दादाश्री : बहुत हुआ तो धीरे से कहना कि ऐसा करो तो अच्छा, फिर मानना न मानना आपकी मरज़ी की बात है। आपकी धौल सामनेवाले को लगे ऐसी हो और उससे सामनेवाले में बदलाव होता हो तभी धौल मारना और यदि वह पोली धौल मारोगे तो वह उल्टा बिफरेगा। उससे बेहतर तो धौल नहीं मारना है। घर में चार बच्चे हों, उनमें से दो की कोई भूल नहीं हो तब भी बाप उन्हें डाँटता रहता है और दूसरे दो भूल करते ही रहते हों, फिर भी उन्हें कुछ नहीं कहता। यह सब उसके पूर्व के रूटकॉज़ के कारण है। उसकी तो आशा ही मत रखना प्रश्नकर्ता : बच्चों को चिरंजीवी क्यों कहते होंगे? दादाश्री : चिरंजीवी नहीं लिखें तो दूसरे शब्द घुस जाएँगे। यह बेटा बड़ा हो और सुखी हो, हमारी अर्थी उठने से पहले उसे सुखी देखें ऐसी भावना है न? फिर भी अंदर मन में ऐसी आशा है कि यह बुढ़ापे में सेवा करे। ये आम के पेड़ क्यों उगाते हैं? आम खाने के लिए। लेकिन आज के बच्चे, वे आम के पेड़ कैसे हैं? उनमें दो ही आम आएँगे और बाप के पास से दूसरे दो आम माँगेंगे। इसलिए आशा मत रखना। एक भाई कहते हैं कि मेरा बेटा कहता है कि आपको महीने के सौ रुपये भेजूं? तब वे भाई कहते हैं कि मैंने तो उसे कह दिया कि भाई, मुझे तेरे बासमती की ज़रूरत नहीं है, मेरे यहाँ बाजरा उगता है। उससे पेट भर जाता है। यह नया व्यापार कहाँ शुरू करें? जो है उसमें संतोष है। 'मित्रता', वह भी 'एडजस्टमेन्ट' प्रश्नकर्ता : बच्चों को मेहमान मानें? दादाश्री : मेहमान मानने की ज़रूरत नहीं है। इन बच्चों को सुधारने के लिए एक रास्ता है, उनके साथ मित्रता करो। हमने तो बचपन से ही
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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