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________________ १७२ आप्तवाणी-३ I ज़्यादा अक्लमंदी है। वह पाँच वर्ष तक ही करना होता है । फिर तो बेटा कहे कि बापूजी मुझे फ़ीस दो । तब कहना कि ' भाई पैसा यहाँ नल में नहीं आता। मुझे दो दिन पहले से कहना चाहिए था । मुझे उधार लेकर आने पड़ते हैं।' ऐसा कहकर दूसरे दिन देने चाहिए। बच्चे तो ऐसा समझ बैठे होते हैं कि जैसे नल में पानी आता है वैसे बापूजी पानी ही देते हैं। इसलिए बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार रखना कि उनसे सगाई बनी रहे और वे सिर पर न चढ़ बैठे, बिगड़ें नहीं । यह तो बेटे को इतना अधिक लाड़ करते हैं कि बेटा बिगड़ जाता है | अतिशय लाड़ तो होता होगा? इस बकरी के ऊपर प्यार आता है? बकरी में और बच्चों में क्या फर्क है? दोनों ही आत्मा हैं। अतिशय लाड़ नहीं और नि:स्पृह भी नहीं हो जाना चाहिए। बेटे से कहना चाहिए कि कोई कामकाज हो तो पूछना। जब तक मैं बैठा हूँ तब तक कोई अड़चन हो तो पूछना। अड़चन हो तभी, नहीं तो हाथ मत डालना। यह तो बेटे की जेब में से पैसे नीचे गिर रहे हों तो बाप शोर मचा देता है, ‘अरे चंदू, अरे चंदू ।' आप क्यों शोर मचाते हैं? अपने आप पूछेगा तब पता चलेगा। इसमें आप क्यों कलह करते हो? और अगर आप नहीं होते तो क्या होता? 'व्यवस्थित' के ताबे में है । और बिना काम के दख़ल करते हैं। संडास भी व्यवस्थित के ताबे है, और आपका आपके पास है। खुद के स्वरूप में खुद हो, वहाँ पुरुषार्थ है। और खुद की स्वसत्ता है। इस पुद्गल में पुरुषार्थ है ही नहीं । पुद्गल प्रकृति के अधीन है। बच्चों का अहंकार जागने के बाद उसे कुछ नहीं कह सकते और आप क्यों कहें? ठोकर लगेगी तो सीखेंगे। बच्चे पाँच वर्ष के हों तब तक कहने की छूट है और पाँच से सोलह वर्षवाले को कभी दो चपत मारनी भी पड़े। लेकिन बीस वर्ष का जवान होने के बाद उसका नाम तक नहीं ले सकते, एक अक्षर भी नहीं बोल सकते, बोलना वह गुनाह कहलाएगा। नहीं तो किसी दिन बंदूक़ मार देगा । प्रश्नकर्ता : ये ‘अन्सर्टिफाइड फादर' और 'मदर' बन गए हैं इसलिए यह पज़ल खड़ा हो गया है? दादाश्री : हाँ, नहीं तो बच्चे ऐसे होते ही नहीं, बच्चे कहे अनुसार चलें, ऐसे होते। यह तो माँ-बाप ही बगैर ठिकाने के हैं। ज़मीन ऐसी है,
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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