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________________ आप्तवाणी-३ १७१ होंगे। बच्चों के साथ कहीं लाड़-प्यार किया जाता होगा? यह लाड़-प्यार तो गोली मारता है। लाड़-प्यार द्वेष में बदल जाता है। खींच-तानकर प्रीत करके चला लेना चाहिए। बाहर 'अच्छा लगता है' ऐसा कहना चाहिए। लेकिन अंदर समझना कि ज़बरदस्ती प्रीति कर रहे हैं, यह सच्चा संबंध नहीं है। बेटे के संबंध का कब पता चलेगा? कि जब आप एक घंटा उसे मारे, गालियाँ दें, तब वह कलदार है या नहीं, उसका पता चल जाएगा। यदि आपका सच्चा बेटा हो, तो आपके मारने के बाद भी वह आपको आपके पैर छूकर कहेगा कि बापूजी, आपका हाथ बहुत दु:ख रहा होगा! ऐसा कहनेवाला हो तो सच्चे संबंध रखना। लेकिन यह तो एक घंटा बेटे को डाँटें तो बेटा मारने दौड़ेगा! यह तो मोह को लेकर आसक्ति होती है। 'रियल बेटा' किसे कहा जाता है? कि बाप मर जाए तो बेटा भी शमशान में जाकर कहे कि 'मुझे मर जाना है।' कोई बेटा बाप के साथ मरता है आपकी मुंबई में? यह तो सब पराई पीड़ा है। बेटा ऐसा नहीं कहता कि मुझ पर सब लुटा दो, लेकिन यह तो बाप ही बेटे पर सब लुटा देता है। यह अपनी ही भूल है। आपको बाप की तरह सभी फ़र्ज़ निभाने हैं। जितने उचित हों उतने सभी फ़र्ज़ निभाने हैं। एक बाप अपने बेटे को छाती से लगाकर ऐसे दबा रहा था, उसने खूब दबाया, तो बेटे ने बाप को काट लिया! कोई आत्मा किसी का पिता या पुत्र हो ही नहीं सकता। इस कलियुग में तो माँगनेवाले, लेनदार ही बेटे बनकर आए होते हैं! हम ग्राहक से कहें कि मुझे तेरे बिना अच्छा नहीं लगता, तेरे बिना अच्छा नहीं लगता तो ग्राहक क्या करेगा? मारेगा। यह तो रिलेटिव सगाईयाँ हैं, इसमें से कषाय खड़े होते हैं। इस राग कषाय में से द्वेष कषाय खड़ा होता है। खुशी में उछलना ही नहीं है। यह खीर उफने, तब चूल्हें में से लकड़ी निकाल लेनी पड़ती है, उसके जैसा है। ... फिर भी उचित व्यवहार कितना? प्रश्नकर्ता : बच्चों के बारे में क्या उचित है और क्या अनुचित, वह समझ में नहीं आता। दादाश्री : जितना सामने चलकर करते हैं, वह सब ज़रूरत से
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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