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________________ १६८ आप्तवाणी-३ हैं पागल जैसा, फिर बच्चे भी पागलपन ही करेंगे न! प्रश्नकर्ता : बच्चे तुच्छता से बोलते हैं। दादाश्री : हाँ, लेकिन वह आप किस तरह बंद करोगे? यह तो आपस में बंद हो जाए न, तो सबका अच्छा होगा। एक बार मन विषैला हो गया, फिर उसकी लिंक शुरू हो जाती है। फिर मन में उसके लिए अभिप्राय बन जाता है कि 'यह आदमी ऐसा ही है।' तब आपको मौन लेकर सामनेवाले को विश्वास में लेने जैसा है। बोलते रहने से किसी का नहीं सुधरता। सुधरना तो, 'ज्ञानीपुरुष' की वाणी से सुधरता है। बच्चों के लिए तो माँ-बाप की जोखिमदारी है। आप नहीं बोलोगे, तो नहीं चलेगा? चलेगा। इसलिए भगवान ने कहा है कि जीते जी ही मरे हुए जैसे रहो। बिगड़ा हुआ सुधर सकता है। बिगड़े हुए को काटना नहीं चाहिए। बिगड़े हुए को सुधारना वह हमसे हो सकता है, आपको नहीं करना है। आपको हमारी आज्ञा के अनुसार चलना है। वह तो जो सुधरा हुआ हो वही दूसरों को सुधार सकता है। खुद ही नहीं सुधरे हों, तो दूसरों को किस तरह सुधार सकेंगे? बच्चों को सुधारना हो तो हमारी इस आज्ञा के अनुसार चलो। घर में छह महीने का मौन लो। बच्चे पूछे तभी बोलना और उसके लिए भी उन्हें कह देना कि मुझे न पूछो तो अच्छा। और बच्चों के लिए उल्टा विचार आए तो उसका तुरंत ही प्रतिक्रमण कर देना चाहिए। ___ 'रिलेटिव' समझकर उपलक रहना बच्चों को तो नौ महीने पेट में रखना, फिर चलाना, घुमाना, छोटे हों तब तक। फिर छोड़ देना। ये गाय-भैंस भी छोड़ देते हैं न? बच्चों को पाँच वर्ष तक टोकना पड़ता है, फिर टोकना भी नहीं चाहिए और बीस साल के बाद तो उसकी पत्नी ही उसे सुधारेगी। आपको नहीं सुधारना है। बच्चों के साथ उपलक (सतही, ऊपर ऊपर से, सुपरफ्लुअस) रहना है। असल में तो खुद का कोई है ही नहीं। इस देह के आधार पर मेरे
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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