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________________ आप्तवाणी-३ १६९ हैं। देह जल जाए तो कोई साथ में आता है? यह तो जो मेरा कहकर छाती से चिपकाते हैं, उन्हें बहुत उपाधी है। बहुत भावुकतावाले विचार काम नहीं आते। बेटा व्यवहार से है। अगर बेटा जल जाए तो इलाज करवाना, लेकिन आपने क्या रोने की शर्त रखी है? सौतेले बच्चे हों तो गोद में बिठाकर दूध पिलाते हैं? ना! वैसा रखना। यह कलियुग है। 'रिलेटिव' संबंध है। रिलेटिव को रिलेटिव रखना चाहिए, 'रियल' नहीं करना चाहिए। यह रियल संबंध होता तो बच्चे से कहते कि 'तू सुधरे नहीं तब तक अलग रह।' लेकिन यह तो रिलेटिव संबंध है इसलिए - एडजस्ट एवरीव्हेर। यह आप सुधारने नहीं आए हो, आप कर्मों के शिकंजे में से छूटने के लिए आए हो। सुधारने के बदले तो अच्छी भावना करो। बाकी कोई किसीको सुधार नहीं सकता। वह तो ज्ञानीपुरुष सुधरे हुए होते हैं, वे दूसरों को सुधार सकते हैं। इसलिए उनके पास ले जाओ। ये बिगड़ते क्यों हैं? उकसाने से। सारे वर्ल्ड का काम उकसाने से बिगड़ा है। इस कुत्ते को भी छेड़ो तो काट खाता है, काट लेता है। इसलिए लोग कुत्ते को छेड़ते नहीं है। इन मनुष्यों को छेड़ेंगे तो क्या होगा? वे भी काट खाएँगे। इसीलिए मत छेड़ना। हमारे इस एक-एक शब्द में अनंत-अनंत शास्त्र समाए हुए हैं ! इसे समझे और सीधा चले तो काम ही निकाल दे! एकावतारी हो सकें, ऐसा यह विज्ञान है! लाखों जन्म कम हो जाएँगे! इस विज्ञान से तो राग भी उड़ जाएँगे और द्वेष भी उड़ जाएंगे और वीतराग होते जाएँगे जाएगा। अगुरुलघु स्वभाववाला हो जाएगा, इसलिए इस विज्ञान का जितना लाभ उठाया जाए, उतना कम है। सलाह देना, परंतु देनी ही पड़े तब हमारी तरह 'अबुध' हो गया तो काम ही हो गया। बुद्धि काम में ली तो संसार खड़ा हो गया वापस। घर के लोग पूछे, तभी जवाब देना चाहिए आपको, और उस समय मन में होना चाहिए कि ये नहीं पूछे तो अच्छा, ऐसी मन्नत माननी चाहिए। क्योंकि नहीं पूछेगे तो आपको यह दिमाग़ चलाना नहीं पड़ेगा। ऐसा है न, कि हमारे ये पुराने संस्कार सारे खत्म हो गए हैं। यह दूषमकाल ज़बरदस्त फैला हुआ है, संस्कारमात्र खत्म हो गए
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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