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आप्तवाणी-३
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डिसिप्लिन नहीं है। इसीलिए आप कलह करना बंद कर दो। आपको जोजो शक्तियाँ माँगनी हों, वे इन दादा के पास से रोज़ सौ-सौ बार माँगना, सब मिलेंगी।
___अब इन भाईसाब को समझ में आया इसलिए उन्होंने तो हमारी आज्ञा का पालन करके भतीजे को घर में सभी ने कुछ भी कहना बंद कर दिया। हफ्ते के बाद परिणाम यह आया कि भतीजा अपने आप ही सात बजे उठने लग गया और घर में सबसे ज्यादा अच्छी तरह काम करने लग गया।
सुधारने के लिए 'कहना' बंद करो इस काल में कम बोलना, उसके जैसा कुछ भी नहीं है। इस काल में तो बोल पत्थर जैसे लगें, ऐसे निकलते हैं, और हरएक का ऐसा ही होता है। इसीलिए बोलना कम कर देना अच्छा। किसी से कुछ भी कहने जैसा नहीं है। कहने से अधिक बिगड़ता है। उसे कहें कि गाड़ी पर जल्दी जा, तो वह देर से जाता है। और कुछ न कहें तो टाइम पर जाता है। हम नहीं हों, तो भी सब चले ऐसा है। यह तो खुद का झूठा अहंकार है। जिस दिन से आप बच्चों के साथ किच-किच करना आप बंद करोगे, उस दिन से बच्चे सुधरने लगेंगे। आपके बोल अच्छे नहीं निकलते, इसीलिए सामनेवाला चिढ़ता है। आपके बोल वह स्वीकार नहीं करता, बल्कि वे बोल वापस आते हैं। आप तो बच्चे को खाने-पीने का बनाकर दो और अपना फ़र्ज़ पूरा करों, अन्य कुछ कहने जैसा नहीं है। कहने से फायदा नहीं, ऐसा आपका सार निकलता है न? बच्चे बड़े हो गए हैं, वे क्या सीढ़ियों पर से गिर जाएँगे? आप अपना आत्मधर्म क्यों चूकते हो? ये बच्चों के साथ का तो रिलेटिव धर्म है। वहाँ बेकार माथाकूट करने जैसा नहीं है। कलह करते हो, इसके बजाय मौन रहोगे तो अधिक अच्छा रहेगा। कलह से तो खुद का दिमाग बिगड़ जाता है और सामनेवाले का भी बिगड़ जाता है।
प्रश्नकर्ता : बच्चे उनकी ज़िम्मेदारी समझकर नहीं रहते।
दादाश्री : ज़िम्मेदारी 'व्यवस्थित' की है, वह तो उसकी ज़िम्मेदारी समझा हुआ ही है। आपको उसे कहना नहीं आया, इसीलिए गड़बड़ होती है। सामनेवाला माने, तब हमारा कहा हुआ काम का। यह तो माँ-बाप बोलते