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________________ १५६ आप्तवाणी-३ 'पेमेन्ट' में तो समता रखनी चाहिए यह आपको गद्दी पर बैठे हों वैसा सुख है, फिर भी भोगना नहीं आए तब क्या हो? अस्सी रुपये मन के भाववाले बासमती चावल में रेती डालते हैं। यदि दुःख आए तो उसे ज़रा कहना तो चाहिए न, 'यहाँ क्यों आए हो? हम तो दादा के हैं। आपको यहाँ नहीं आना है। आप जाओ दूसरी जगह। यहाँ कहाँ आए आप? आप घर भूल गए।' इतना उनसे कहें तो वे चले जाते हैं। यह तो आपने बिल्कुल अहिंसा की(!) दु:ख आएँ तो उन्हें भी घुसने दें? उन्हें तो निकाल देना चाहिए, उसमें अहिंसा टूटती नहीं है। दु:ख का अपमान करें तो वे चले जाते हैं। आप तो उसका अपमान भी नहीं करते। इतने अधिक अहिंसक नहीं होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : दुःख को मनाएँ तो नहीं जाएगा? दादाश्री : ना। उसे मनाना नहीं चाहिए। उसे पटाएँ तो वह पटाया जा सके, ऐसा नहीं है। उसे तो आँखें दिखानी पड़ती हैं। वह नपुंसक जाति है। यानी उस जाति का स्वभाव ही ऐसा है। उसे अटाने-पटाने जाएँ तो वह ज़्यादा तालियाँ बजाता है और अपने पास ही पास आता जाता है। 'वारस अहो महावीरना, शूरवीरता रेलावजो, कायर बनो ना कोई दी, कष्टो सदा कंपावजो।' आप घर में बैठे हों, और कष्ट आएँ, तो वे आपको देखकर काँप जाने चाहिए और समझें कि 'हम यहाँ कहाँ आ फँसे! हम घर भूल गए लगते हैं!' ये कष्ट आपके मालिक नहीं, वे तो नौकर हैं। यदि कष्ट आपसे काँपे नहीं तो आप 'दादा के' कैसे? कष्ट से कहें कि, 'दो ही क्यों आए? पाँच होकर आओ। अब तुम्हारे सभी पेमेन्ट कर दूँगा।' कोई आपको गालियाँ दे तो अपना ज्ञान उसे क्या कहता है? "वह तो 'तुझे' पहचानता ही नहीं।" उल्टे 'तुझे "उसे' कहना है कि 'भाई कोई भूल हुई होगी, इसीलिए गालियाँ दे गया। इसलिए शांति रखना।' इतना किया कि तेरा 'पेमेन्ट' हो गया! ये लोग तो कष्ट आते हैं तो शोर मचा देते हैं कि 'मैं मर गया!' ऐसा बोलते हैं। मरना तो एक ही बार है और बोलते हैं सौ-सौ बार कि 'मैं मर गया?' अरे जीवित है और किसलिए
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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