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________________ १४२ आप्तवाणी-३ संसार क्या कहता है कि यदि रेशमी चादर मुफ्त में मिल रही हो तब भी उसे लाकर मत बिछाओ और कॉटन मोल मिल रही हो तब भी लाओ। अब आप पूछोगे कि इसमें क्या फायदा! तो कहे, यह मुफ्त लाने की आदत पड़ने के बाद यदि कभी नहीं मिलेगा तो मुश्किल में पड़ जाओगे। इसलिए ऐसी आदत रखना कि हमेशा मिलता रहे। इसलिए कॉटन की खरीदकर लाना। नहीं तो आदत पड़ने के बाद मुश्किल लगेगा। यह जगत् ही सारा ऐसा हो गया है, उपयोग नाम को भी नहीं मिलता। बड़ेबडे आचार्य महाराजों को कहें कि साहब आज इन चार गद्दों पर सो जाइए। तो उन्हें महाउपाधि (बाहर से आनेवाले दुःख) लगेगी, नींद ही नहीं आएगी सारी रात! क्योंकि दरी पर सोने की आदत पड़ी हुई है न! इन्हें दरी की आदत हो गई है और ये चार गद्दो की आदतवाले हैं। भगवान को तो दोनों ही कबूल नहीं हैं। साधु के तप को या गृहस्थी के विलास को भगवान कबूल नहीं करते। वे तो कहते हैं कि यदि आपका उपयोगपूर्वक होगा तो वह सच्चा। उपयोग नहीं और ऐसे ही आदत पड़ जाए तो सब मीनिंगलेस कहलाता है। बातें ही समझनी हैं कि इस रास्ते पर ऐसा है और इस रास्ते पर ऐसा है। फिर निश्चित करना है कि कौन-से रास्ते जाना चाहिए! नहीं समझ में आए तो 'दादा' से पूछना। तब दादा आपको बताएँगे कि ये तीन रास्ते जोखिमवाले हैं और यह रास्ता बिना जोखिम का है, उस रास्ते पर हमारे आशीर्वाद लेकर चलना। और ऐसी गोठवणी से सुख आता है एक व्यक्ति मुझे कहता है कि, 'मुझे कुछ समझ नहीं पड़ती है। मुझे कुछ आशीर्वाद दीजिए।' उसके सिर पर हाथ रखकर मैंने कहा, 'जा, आज से सुख की दुकान खोल। अभी तेरे पास जो है वह दुकान खाली कर डाल।' सुख की दुकान मतलब क्या? सुबह से उठे तब से दूसरे को सुख देना, दूसरा व्यापार नहीं करना। अब उस मनुष्य को तो यह बहुत अच्छी तरह से समझ में आ गया। उसने तो बस यह शुरू कर दिया, इसलिए वह तो खूब आनंद में आ गया! सुख की दुकान खोलेगा न, तब फिर तेरे भाग में सुख ही रहेगा और लोगों के भाग में भी सुख ही जाएगा।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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