________________
आप्तवाणी - ३
है? मीनिंगलेस है। जिस घड़ी ने मुझे परेशान किया, जिसे देखते ही अंदर अत्यंत दुःख लगे, वह किस काम का? काफी कुछ लोगों को बाप को देखने से अंदर द्वेष और चिढ़ होती है। खुद पढ़ता नहीं हो, किताब एक तरफ रखकर खेल में पड़ा हो, और अचानक बाप को देखे तो उसे द्वेष और चिढ़ होती है, वैसे ही इस घड़ी को देखते ही चिढ़ होती है तो फिर रखो घड़ी को एक तरफ । और यह दूसरा सब, रेडियो, टी.वी. तो प्रत्यक्ष पागलपन है, प्रत्यक्ष 'मेडनेस' है।
१४१
प्रश्नकर्ता : रेडियो तो घर-घर में हैं।
I
दादाश्री : वह बात अलग है । जहाँ ज्ञान ही नहीं, वहाँ पर क्या हो? उसे ही मोह कहते हैं न? मोह किसे कहते हैं ? बिना ज़रूरत की चीज़ को लाना और ज़रूरत की चीज़ में कमी करना, उसीको मोह कहते हैं।
यह किसके जैसा है, वह कहूँ? कोई प्याज़ को चीनी की चाशनी में डालकर दे तो ले आए, उसके जैसा है । अरे, तुझे प्याज़ खानी है या चाशनी खानी है, वह पहले पक्का तो कर। प्याज़ वह प्याज़ होनी चाहिए। नहीं तो प्याज़ खाने का अर्थ ही क्या है? यह तो सारा पागलपन है। खुद का कोई डिसीज़न नहीं, खुद की सूझ नहीं और कुछ भान ही नहीं है! किसीको प्याज़ को चीनी की चाशनी में खाते हुए देखे तो खुद भी खाता है! प्याज़ ऐसी वस्तु है कि चीनी की चाशनी में डाला कि वह यूजलेस हो जाता है। यानी किसीको भान नहीं है, बिल्कुल बेभानपना है। खुद अपने आप को मन में मानता है कि मैं कुछ हूँ और उसे ना भी कैसे कहा जाए हमसे? ये आदिवासी भी मन में समझते हैं कि मैं कुछ हूँ। क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि इन दो गायों और इन दो बैलों का मैं ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) हूँ! और उन चार जनों का वह ऊपरी ही माना जाएगा न? जब उन्हें मारना हो, तब वह मार सकता है, उसका अधिकार है उसे । और किसी का ऊपरी न हो तो अंत में पत्नी का तो ऊपरी होगा ही । इसे कैसे पहुँच सकेंगे? जहाँ विवेक नहीं, सार - असार का भान नहीं, वहाँ क्या हो? मोक्ष की बात तो जाने दो, लेकिन सांसारिक हिताहित का भी भान नहीं है।