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________________ आप्तवाणी-३ १४३ यदि हमारी हलवाई की दुकान हो तो फिर किसी के वहाँ जलेबी मोल लेने जाना पड़ेगा? जब खानी हो तब खा सकते हैं। दुकान ही हलवाई की हो वहाँ फिर क्या? इसलिए तू सुख की ही दुकान खोलना । फिर कोई परेशानी ही नहीं। आपको जिसकी दुकान खोलनी हो उसकी खोली जा सकती है I यदि हररोज़ न खोली जा सके तो सप्ताह में एक दिन रविवार के दिन तो खोलो! आज रविवार है, 'दादा' ने कहा है कि सुख की दुकान खोलनी । आपको सुख के ग्राहक मिल जाएँगे । 'व्यवस्थित' का नियम ही ऐसा है कि ग्राहक मिलवा देता है । व्यवस्थित का नियम यह है कि तूने जो निश्चित किया हो, उस अनुसार तुझे ग्राहक भिजवा देता है । जिसे जो अच्छा लगता हो, उसे उसकी दुकान खोलनी चाहिए। कितने तो उकसाते ही रहते हैं । उसमें से उन्हें क्या मिलता है ? किसीको हलवाई का शौक हो तो वह किसकी दुकान खोलेगा ? हलवाई की ही न। लोगों को किसका शौक है? सुख का । तो सुख की ही दुकान खोल, ताकि लोग सुख पाएँ और खुद के घरवाले भी सुख भोगें । खाओ, पीओ और मज़े करो। आनेवाले दुःख के फोटो मत उतारो। सिर्फ नाम सुना कि मगनभाई आनेवाले हैं, अभी तक आए नहीं हैं, सिर्फ पत्र ही आया है, तब से ही उसके फोटो खींचने शुरू कर देते हैं । ये ‘दादा' तो ‘ज्ञानीपुरुष', उनकी दुकान कैसी चलती है? पूरा दिन ! यह दादा की सुख की दुकान, उसमें किसी ने पत्थर डाला हो, फिर भी उसे गुलाबजामुन खिलाते हैं। सामनेवाले को थोड़े ही पता है कि यह सुख की दुकान है, इसलिए यहाँ पत्थर नहीं मारा जाए? वह तो, निशाना लगाए बिना जहाँ मन में आया वहाँ मारता है । 'हमें किसीको दुःख नहीं देना है', ऐसा निश्चित किया फिर भी देनेवाला तो दे ही जाएगा न? तब क्या करेगा तू? देख मैं तुझे एक रास्ता बताऊँ। तुझे सप्ताह में एक दिन 'पोस्ट ऑफिस' बंद रखना है। उस दिन किसी का मनीऑर्डर स्वीकारना नहीं है और किसीको मनीऑर्डर करना भी नहीं है। और यदि कोई भेजे तो उसे एक तरफ रख देना और कहना
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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