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________________ १३६ आप्तवाणी-३ हैं ! वे कलाएँ इतनी सुंदर होती हैं कि सर्व प्रकार के दु:खों से मुक्त करती हैं। समझ कैसी? कि दुःखमय जीवन जिया!! 'यह' ज्ञान ही ऐसा है कि जो सीधा कर दे, और जगत् के लोग तो ऐसे हैं कि आपने सीधा डाला हो, फिर भी उल्टा कर देते हैं। क्योंकि समझ उल्टी है। उल्टी समझ है, इसीलिए उल्टा करते हैं, नहीं तो इस हिंदुस्तान में किसी जगह पर दु:ख नहीं हैं। ये जो दुःख हैं वे नासमझी के दुःख हैं और लोग सरकार को कोसते हैं, भगवान को कोसते हैं कि 'ये हमें दुःख देते हैं!' लोग तो बस कोसने का धंधा ही सीखे हैं। अभी कोई नासमझी से, भूल से खटमल मारने की दवाई पी जाए तो क्या वह दवाई उसे छोड़ देगी? प्रश्नकर्ता : नहीं छोड़ेगी। दादाश्री : क्यों, भूल से पी ली थी न? जान-बूझकर नहीं पी, फिर भी वह नहीं छोड़ेगी? प्रश्नकर्ता : नहीं। उसका असर नहीं छोड़ेगा। दादाश्री : अब उसे कौन मारता है? वह खटमल मारने की दवाई उसे मारती है, भगवान नहीं मारते, यह दुःख देना या अन्य कोई चीज़, वह भगवान नहीं करते, पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) ही दुःख देता है। यह खटमल की दवाई भी पुद्गल ही है न? आपको इसका अनुभव होता है या नहीं होता? इस काल के जीव पूर्वविराधक वृत्तियोंवाले हैं, पूर्वविराधक कहलाते हैं। पहले के काल के लोग तो खाने-पीने का नहीं हो, कपड़े-लत्ते नहीं हों, फिर भी चला लेते थे, और अभी तो कोई भी कमी नहीं, फिर भी इतनी अधिक कलह ही कलह! उसमें भी पति को इन्कम टैक्स, सेल्स टैक्स के लफड़े होते हैं, इसीलिए वहाँ के साहब से वे डरते हैं और घर लेकिन बाईसाहब को पूछे कि आप क्यों डरती हो? तब वह कहती है कि मेरे पति सख्त हैं।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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