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________________ आप्तवाणी-३ १२९ दादाश्री : कोई फर्क नहीं है। आपमें अज्ञानता थी उसके कारण चंचलता रहती है। हम में नाम मात्र की भी चंचलता नहीं है। 'ज्ञानी' कौन? 'दादा भगवान' कौन? प्रश्नकर्ता : ‘दादा भगवान' का अर्थ क्या है? 'ए.एम.पटेल' का आत्मा, वही 'दादा भगवान' हैं? दादाश्री : हाँ। दो प्रकार के आत्मा हैं, एक ‘मिकेनिकल आत्मा' और एक 'दरअसल आत्मा'। 'मिकेनिकल आत्मा' चंचल होता है और 'दरअसल आत्मा', वह 'दादा भगवान' हैं। यह सबकुछ जो बोलता करता है, खाता है, पीता है, व्यापार करता है, शास्त्र पढ़ता है, धर्मध्यान करता है, वह सब ‘मिकेनिकल' है, वह 'दरअसल आत्मा' नहीं है। आपमें भी जो 'दरअसल आत्मा', वही 'दादा भगवान' हैं, वही 'परमात्मा' है। ___जो यह सारा व्यवहार करता है, वह 'मिकेनिकल' आत्मा करता है। जप, तप, ध्यान, शास्त्रों का पठन, वह सबकुछ ‘मिकेनिकल' आत्मा करता है। किसलिए? तो यह कि, 'अविचल आत्मा प्राप्त करने के लिए।' लेकिन मूल में भूल यह है कि 'मैं आत्मा हूँ' ऐसा जिसे मानता है, वह 'मिकेनिकल' आत्मा है। और उसे सुधारने जाता है। क्रोध-मानमाया-लोभ को दबाने के लिए, उनका छेदन करने के लिए उठा-पठक करके रख देता है। लेकिन ये गुण किसके हैं? आत्मा के हैं? इसकी पहचान नहीं होने से अनंत जन्मों से यह मार खाता रहा है। क्रोध-मानमाया-लोभ, वे आत्मा के व्यतिरेक गुण हैं, अन्वय गुण नहीं हैं। अन्वय गुण अर्थात् आत्मा के स्वाभाविक गुण, निरंतर साथ में रहनेवाले गुण। जब कि व्यतिरेक गुण अर्थात् सिर्फ आत्मा की हाज़िरी से ही पुद्गल में उत्पन्न होनेवाले गुण! प्रश्नकर्ता : ‘मिकेनिकल आत्मा' और 'शुद्धात्मा' में क्या फर्क है? दादाश्री : 'मिकेनिकल आत्मा', वह आत्मा से प्रतिबिंब उत्पन्न हुआ है, उसी स्वरूप में दिखता है। उसमें 'दरअसल आत्मा' के गुणधर्म नहीं
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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