________________
१३०
आप्तवाणी-३
होते, लेकिन वैसे ही लक्षण दिखते हैं। पूरा जगत् इसी में फँसा है। मिकेनिकल आत्मा में अचलता नहीं होती।
प्रश्नकर्ता : आपमें 'ज्ञानी' कौन है और 'दादा भगवान' कौन है, यह समझ में नहीं आता।
दादाश्री : ज्ञान के वाक्य जो बोलते हैं, उन्हें व्यवहार में 'ज्ञानी' कहते हैं। और अंदर प्रकट हुए हैं, उनके बिना तो ज्ञान वाक्य निकलेंगे ही नहीं। अंदर प्रकट हुए हैं, वे 'दादा भगवान' हैं। हमें भी वही पद प्राप्त करना है, इसलिए हम भी 'दादा भगवान' को नमस्कार करते हैं। किसी समय हम 'दादा भगवान' के साथ अभेद रहते हैं, तन्मय रहते हैं और वाणी बोलते समय अंदर 'भगवान' अलग और 'हम' अलग!