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आप्तवाणी-३
दादाश्री : भगवान दुःख के हर्ता भी नहीं हैं और सुख के कर्ता भी नहीं। भगवान के प्रति भेदबुद्धि चली जाए, अभेदबुद्धि उत्पन्न हो जाए, तब दुःख जाएगा। भगवान किसीका दुःख लेते नहीं है और सुख देते भी नहीं, वे तो ऐसा कहते हैं कि मेरे साथ तन्मयाकार हो जा, एक हो जा, तो दुःख नहीं रहेगा। एक भी बात सही न समझे, वह भ्रांति है I
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राहबर मिटाए भव की भटकन
प्रश्नकर्ता : मोक्ष में जाने का सरल रास्ता कौन-सा है ?
दादाश्री : 'राहबर से मिलना' - वह, राहबर मिला कि हल आ गया। उससे अधिक सीधा और सरल मार्ग भला और कौन-सा है ?
भगवान ने कहा है कि क्या करने से मोक्ष में जाया जा सकता है ? समकित हो जाए तो जाया जा सकता है अथवा 'ज्ञानीपुरुष' की कृपा हो जाए तो जाया जा सकता है। 'ज्ञानी' दो प्रकार के हैं। एक शास्त्रज्ञानी और दूसरे अनुभव ज्ञानी, यथार्थ ज्ञानी । यथार्थ ज्ञानी तो अंदर से पाताल फोड़कर बोलते हैं, वह यथार्थ ज्ञान है । यथार्थ ज्ञान से आत्मज्ञान होता है। बाकी जब तक ‘मैं चंदूलाल हूँ' ऐसा ममताभाव है, तब तक समताभाव कहाँ से आएगा? एक बार समकित को स्पर्श करे उसके बाद ही यथार्थ समताभाव आएगा। ये लोग जो कहते हैं, वह तो लौकिक समताभाव कहलाता है । शास्त्र और पुस्तकें पढ़-पढ़कर पुस्तकों का मोक्ष हो गया, लेकिन उनका नहीं हुआ ! आत्मसुख की अनुभूति
प्रश्नकर्ता : मन शांत हो जाए, मन परेशान नहीं करे, तब वह कौनसा सुख उत्पन्न होता है ? चित्त भटके नहीं तो वह कौन-सा सुख उत्पन्न होता है?
दादाश्री : यह मन ही सब करता है । मन ही चित्त को, अहंकार को, सभी को उकसाता है । मन शांत हो जाए तो सबकुछ शांत हो जाता है ।
प्रश्नकर्ता : आत्मदशा में आत्मा का सुख किस तरह से पता चलता है कि यह आत्मा का ही सुख है?
दादाश्री : बाहर से किसी भी चीज़ में सुख नहीं हो, कुछ भी देखने से