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आप्तवाणी-३
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सुख उत्पन्न नहीं हुआ हो, कुछ सुनने से, खाने से, स्पर्श से, ठंडक से या किसी भी प्रकार का इन्द्रिय सुख नहीं हो, पैसों के कारण सुख नहीं हो, कोई ऐसा कहनेवाला नहीं हो, विषयसुख नहीं हो, वहाँ पर अदंर जो सुख बरतता है, वह आत्मा का सुख है। लेकिन इस सुख का आपको खास पता नहीं चलेगा। जब तक विषय होते हैं, तब तक आत्मा का स्पष्ट सुख नहीं आता।
___छूटे देहाध्यास, वहाँ.... प्रश्नकर्ता : 'देहाध्यास गया', ऐसा किसे कहते हैं?
दादाश्री : जेब काट ले, गालियाँ दे, मारे फिर भी आपको रागद्वेष नहीं हो तब, देहाध्यास चला गया, कहा जाएगा। जब तक आत्मज्ञान प्राप्त नहीं होता, तब तक पूरा जगत् देहाध्यास से बंधा हुआ है। जितने विकल्प उतने देहाध्यास। देह गुनहगारी में बंधने के लिए नहीं है, मुक्ति के लिए है, जन्मों-जन्म की गुनहगारी लाए हुए हैं उसका निकाल तो करना पड़ेगा न? देहाध्यास जाए तो चारित्र में आया कहलाएगा।
प्रश्नकर्ता : देह में आत्मा का स्थान कहाँ पर है?
दादाश्री : इन बालों में और नाखून में नहीं है, बाकी सभी जगह पर आत्मा का स्थान है। जहाँ पर भी अंगारा लगाएँ और पता चले, वहाँ पर आत्मा का स्थान है।
प्रश्नकर्ता : जड़ में चेतन रखा जा सकता है?
दादाश्री : 'यह पेन मेरा है' कहा, वह आपने मेरेपन का चेतन रखा, इसलिए यदि यह मुझसे खो जाए तो आपको दु:ख होगा!
देह और आत्मा का भिन्नत्व प्रश्नकर्ता : आत्मा और देह का संबंध क्या है?
दादाश्री : आत्मा और देह का कोई संबंध नहीं है। जैसे कि मनुष्य के पीछे परछाई है, उसका मनुष्य के साथ जितना कनेक्शन है, उतना ही आत्मा का और देह का संबंध है। जिस प्रकार से परछाई सूर्यनारायण की