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आप्तवाणी-३
है, वह भी जगह रोकता है। आत्मा के निकल जाने के बाद में सभी खुद के मूल तत्व में आ जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य ने निश्चय किया हो कि स्वरूप में रहना है, तो वह बुद्धिगम्य है? यह मन से होता है? या उससे परे है?
दादाश्री : स्वरूप में रहना-वह मन से, बुद्धि से, सभी से बिल्कुल परे है, लेकिन स्वरूप का भान होना चाहिए। मन 'कम्प्लीट फ़िज़िकल' है।
निद्रा में चेतन की स्थिति प्रश्नकर्ता : रात को सो गए और सुबह जगे, वह किसे पता चलता है कि एक ही नींद में सुबह हो गई?
दादाश्री : ये सब मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार अर्थात् अंत:करण के धर्म हैं सारे। आत्मा चैतन्य अक्रिय भाग हैं, ज्ञाता-दृष्टा और अक्रिय हैं। इसमें अंत:करण अक्रिय हो जाए, तो सुखमय परिणाम रहा करता है। रात को सो जाता है यानी अक्रिय हो गया, उसका सुख बरतता है। जब तक क्रिया है, तब तक कम सुख रहता है। यह अहंकार के कारण सोता है, और अहंकार के कारण जगता है। और 'एक ही नींद में सुबह हो गई' कहता है, वह भी अहंकार ही है।
प्रश्नकर्ता : उसमें आत्मा का भास है क्या? दादाश्री : नहीं, नहीं।
प्रश्नकर्ता : रात को सो जाने के बाद आत्मा की दशा कैसी रहती है?
दादाश्री : जो निरंतर शुद्धात्मा के भान में रहता है, वह तो नींद में भी उसी स्थिति में रहता है। और जो 'मैं चंदूलाल हूँ' के भानवाला है, उसे भी नींद में 'मैं चंदूलाल हूँ' का भान चला नहीं जाता। इसीलिए तो वह बोलता हैं कि 'मुझे अच्छी नींद आई।' अरे, तू तो सो रहा था तो फिर यह पता किसे चला? वह अहंकार ने जाना।
प्रश्नकर्ता : मनयोगी और आत्मयोगी में क्या फर्क है?