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________________ आप्तवाणी-३ १०५ अतः उसकी प्रगति रुंध जाएगी। जब कि जिसे आत्मा प्राप्त हुआ है, वह तो अत्यंत जागृतिपूर्वक स्थूल संयोग, सूक्ष्म संयोग और वाणी के संयोगों का ज्ञाता-दृष्टा रहता है और जागृतिपूर्वक प्रतिक्रमण करवाकर उनका निकाल करता है। क्योंकि अब दुकान खाली करनी है, ऐसा नक्की होता है। अक्रमविज्ञान अलग ही प्रकार का है। उसमें हम पहले चार्ज होता हुआ बंद कर देते हैं और जो डिस्चार्ज रहता है उसका समभाव से निकाल करने को कहते हैं, नया चार्ज नहीं हो ऐसा कर देते हैं। यह सबसे आसान आत्यंतिक मुक्ति का मार्ग है! जिन्हें यह मिल गया वे छूट गए!! प्राकृत गुण : आत्म गुण प्रश्नकर्ता : आत्मा प्राप्त करने के लिए, उसके लिए पात्र बनने के लिए अच्छे गुणों की ज़रूरत है क्या? दादाश्री : नहीं। गुणों की ज़रूरत नहीं है, निष्कैफी होने की ज़रूरत है। गुण का क्या करना है? ये सभी तो प्राकृत गुण हैं, पौद्गलिक गुण हैं। प्रश्नकर्ता : ये सभी गुण तो आत्मा के ही हैं न? दादाश्री : इसमें एक भी आत्मा का गुण नहीं है। आप प्रकृति के अधीन हो, और प्रकृति के गुण और आत्मा के गुण सर्वथा जुदा हैं। प्रकृति का एक भी गुण 'शुद्धचेतन' में नहीं है और 'शुद्धचेतन' का एक भी गुण प्रकृति में नहीं है, गुणों से दोनों सर्वथा भिन्न ही हैं।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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