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________________ १०४ आप्तवाणी-३ नहीं होतीं! और किसीकी लोभ की गांठ ऐसी होती है कि एक दिन में या तीन घंटे में ही खत्म कर दे! ऐसे तरह-तरह के स्वभाव रस होते हैं। संयोग : पर और पराधीन स्थूल संयोग, सूक्ष्म संयोग, वाणी के संयोग, पर हैं और पराधीन हैं और शुद्धचेतन उनका ज्ञाता-दृष्टा मात्र है। स्थूल संयोग अर्थात् बाहर से मिलते हैं, वे हैं। स्थूल संयोग उपाधि स्वरूप हैं, फिर भी उनके हम ज्ञाता-दृष्टा रह सकते हैं। क्योंकि यह अक्रमविज्ञान है। सूक्ष्म संयोग, जो देह के अंदर उत्पन्न होते हैं, मन के, बुद्धि के, चित्त के, अहंकार के, वे सूक्ष्म संयोग हैं, और फिर वे चंचल भाग के हैं। चंचल भाग, वह सूक्ष्म है। वाणी के संयोग तो प्रकट रूप से पता चल जाते हैं। वाणी सूक्ष्म भाव से उत्पन्न होती है और स्थूल भाव से प्रकट होती है। वाणी के संयोग सूक्ष्म-स्थूल कहलाते हैं। ये सभी संयोग पर हैं और पराधीन हैं। उन्हें पकड़ने से पकड़ा नहीं जा सकता, और भगाने से भगाया नहीं जा सकता। संयोग मात्र ज्ञेय स्वरूप है और हम ज्ञाता हैं। संयोग खुद ही वियोगी स्वभाव का है। अतः ज्ञाता-दृष्टा रहेंगे तो उसका वियोग इटसेल्फ हो जाएगा। इसमें आत्मा का कोई कर्तव्य नहीं रहता। वह मात्र ज्ञाता-दृष्टा स्वभाव में रह सकता है। संयोग इच्छित हों या अनिच्छित, उनका वियोग होता है। पसंद आनेवाले संयोग को पकड़ने से पकड़ा नहीं जा सकता, नापसंद संयोग को भगाने से भगाया नहीं जा सकता। इसलिए निश्चिंत रहना। संयोग अपने क़ाबू में नहीं हैं। यह 'दादा' की आज्ञा है, इसलिए यदि फाँसी का संयोग भी आ जाए तो वह भी वियोगी स्वभाव का है, ऐसा जानना। अपने पास जो नाशवंत है, उसीको ले जाएगा न? और वह भी वापस 'व्यवस्थित' के हिसाब में आ चुका होगा तो उसे कोई निकाल नहीं सकेगा। इसलिए 'व्यवस्थित' में जो हो सो भले हो। यह बात उसी पर लागू होती है, जिसने आत्मा प्राप्त किया है। अन्य के लिए लागू नहीं होती। क्योंकि आत्मदशा में आए बिना गाली देगा और वापस बोलेगा कि वाणी पर है और पराधीन है तो उसका दुरुपयोग हो जाएगा। फिर मन में निश्चय नहीं करेगा कि ऐसा गलत नहीं बोलना चाहिए।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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