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________________ १०० आप्तवाणी-३ अज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक के सभी स्पष्टीकरण निकले हैं, किसी शास्त्र में नहीं मिलेंगी, ऐसी अपूर्व बातें हैं। ये बहुत सूक्ष्म बातें हैं, ये स्थूल नहीं हैं। स्थूल पूरा हुआ, सूक्ष्म पूरा हुआ, सूक्ष्मतर पूरा हुआ और ये सूक्ष्मतम की बातें हैं। इसीलिए जब तक 'यह' बुलबुला जी रहा है, तब तक काम निकाल लो। यह है, तब तक बातें सुनने को मिलेंगी, फिर यह लिखी हुई वाणी तथारूप फल नहीं देगी। प्रत्यक्ष सुना हुआ हो उसे शब्द उगे बगैर रहेंगे नहीं। इनमें से एक भी शब्द बेकार नहीं जाएगा। जिसकी जितनी शक्ति उसे उतना पच जाएगा। यह केवलज्ञानमयी वाणी है। यहाँ बुद्धि का अंत आता है, मतिज्ञान का अंत आता है, वहाँ पर केवलज्ञान खड़ा है। यह प्रकाश केवलज्ञान से ही उत्पन्न हुआ प्रकाश है। इस जगत् में जो कुछ भी किया जाता है, वह जगत् को पुसाए या नहीं पुसाए, फिर भी मैं कुछ भी नहीं करता हूँ, ऐसा सतत ख्याल जो रहता है, वह केवलदर्शन है, ऐसी समझ रहना, वह केवलज्ञान है! आत्मा : असंग मन-वचन-काया की तमाम संगी क्रियाओं से 'शुद्धचेतन' बिल्कुल असंग ही है। 'शुद्धचेतन' मन-वचन-काया की तमाम संगी क्रियाओं का ज्ञाता-दृष्टा मात्र है। समीप रहने से भ्रांति उत्पन्न होती है। दोनों वस्तुएँ स्वभाव से जुदा ही हैं। आत्मा की कोई क्रिया है ही नहीं, तो फिर ये सब संगी क्रियाएँ किसकी हैं? पुद्गल की। पुद्गल परेशान करे ऐसी चीज़ है, वह पड़ोसी है। पुद्गल कब परेशान नहीं कर सकता? खुद वीर्यवान हो, तब। या फिर आहार बिल्कुल कम ले, जीवित रहने जितना ही ले, तो पुद्गल परेशान नहीं करेगा। शुद्धात्मा निर्लेप है, असंग है, उसे संग स्पर्श ही नहीं करता। हीरा मुट्ठी के आकार का हो गया? या मुट्ठी हीरा के आकार की हो गई? दोनों अपना-अपना काम करते हैं, दोनों अलग ही हैं। उसी प्रकार आत्मा और अनात्मा का है। आत्मा का स्वभाव संग में रहने के बावजूद असंगी है, उस पर कोई दाग़ नहीं लग सकता।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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