SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-३ प्रश्नकर्ता : 'मैं केवलज्ञान स्वरूप हूँ' ऐसा अधिक बोलें तो हर्ज है? दादाश्री : कोई हर्ज नहीं है। लेकिन सिर्फ शब्द के रूप में बोलने का अर्थ नहीं है, समझकर बोलना बेहतर है। जब तक अशुद्ध बाबत आए और उस समय अंदर परिणाम ऊँचे-नीचे हो जाएँ, तब तक 'मैं शुद्धात्मा हूँ' बोलना अच्छा है। फिर आगे की श्रेणी में 'मैं केवलज्ञान स्वरूप हूँ' ऐसा बोल सकते हैं । गुणों की भजना करें, तो स्थिरता रहेगी! यह मेरा स्वरूप है और यह नहीं है, यह जो हो रहा है, वह मेरा स्वरूप नहीं है। ऐसा बोलो तो भी ऊँचे-नीचे परिणाम बंद हो जाएँगे। असर नहीं करेगा। आत्मा क्या है? उसके गुणसहित बोलना, देखना, तब वह प्रकाशमान होगा। प्रश्नकर्ता : केवलज्ञानी और ज्ञानीपुरुष में कितना फर्क है? दादाश्री : केवळज्ञानी कौन कि जिन्हें सभी चीजे ज्ञान से दिखें, जब कि 'ज्ञानीपुरुष' की समझ में सभी चीजें होती हैं, अस्पष्ट रूप से। जब कि केवलज्ञान में पूर्ण रूप से स्पष्ट होता है, अस्पष्ट नहीं होता। केवलज्ञानी कार्य स्वरूप हो चुके होते हैं और ज्ञानीपुरुष कारण स्वरूप हुए हैं, यानी कि केवलज्ञान के कारणों का सेवन कर रहे हैं। यह कैसा है कि एक व्यक्ति बड़ौदा जा रहा हो, यहाँ से दादर स्टेशन पर बड़ौदा जाने के लिए गया हो और हमें कोई पूछे तो कहते हैं कि, 'बड़ौदा गए।' हो रहे कार्य का कारण में आरोपण किया जा सकता है। हमें तो केवलज्ञान उँगली छूकर निकल गया, पचा नहीं, चार डिग्री कम रहा। वह तो, इस केवलज्ञान में नापास हुआ तो आपके काम आया? प्रश्नकर्ता : दादा, हम आपसे प्रश्न पूछते हैं, उनके जवाब बिल्कुल सटीक और तत्क्षण देते हैं, लेकिन वह किसी शास्त्र के आधारवाला नहीं होता। तो वह जवाब आप कहाँ से देते हैं? दादाश्री : मैं सोचकर या पढ़ा हुआ नहीं बोलता हूँ, केवलज्ञान में ऐसे देखकर बोलता हूँ, यह जो आप सुन रहे हो, देख रहे हो, वह केवलज्ञान का प्रकाश है। ये सारी वाणी केवलज्ञानमय है। केवलज्ञान के कुछ ज्ञेय हमें नहीं दिखते हैं। यह तो दुषमकाल का केवलज्ञान है !!
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy