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आप्तवाणी-३
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से संगमरमर का पत्थर दोपहर को गरम हो जाता है, तो इसमें संगमरमर का पत्थर कुछ गरम स्वभाव का नहीं है, वह तो मूलतः ठंडे स्वभाव का ही है। वह तो सूर्यनारायण के स्वभाव से गरम हो जाता है।
आत्मा को टंकोत्कीर्ण स्वभाववाला कहते हैं, वह उसके अगुरु-लघु स्वभाव के कारण है।
आत्मा : अरूपी __ आत्मा अरूपी है, उसने बहुरूपी का रूप धारण किया है। बाहर जो बहुरूपी चलता है, उसे वह खुद जानता है कि मैं खुद बहुरूपी नहीं हूँ, लेकिन बहुरूपी का रूप धारण किया है। लोग हँसें तो खुद भी हँसता है। यानी कि खुद के स्वरूप को ही जानता है।
___ आत्मा अरूपी है। यानी भगवान ने क्या कहा है कि यदि अरूपी मानकर आत्मा की भजना करने जाएगा तो पुद्गल के अलावा अन्य तत्व भी अरूपी हैं, उनमें तू फँस जाएगा, इसलिए 'ज्ञानीपुरुष' के पास से आत्मा तत्व को जान लेना तो मूल आत्मा मिल जाएगा। आत्मा सिर्फ अरूपी ही नहीं है, उसके और भी अनंत गुण हैं। इसलिए एक गुण को पकड़कर रखेगा तो ठिकाना नहीं पड़ेगा।
प्रश्नकर्ता : आत्मा अरूपी है और कर्म रूपी हैं। तो अरूपी को रूपी कैसे चिपक गए?
दादाश्री : ये कर्म चिपके हैं, वह भ्रांति से ऐसा लगता है कि, 'मुझे चिपका', लेकिन ऐसा नहीं है। घर में यदि चंदूलाल सेठ अकेले हों और रात को सो रहे हों और दो बजे रसोई में कुछ खड़के तो पूरी रात ‘भूत है' सोचकर घबराता रहता है। सुबह जाए और दरवाज़ा खोले तो अंदर मोटा चूहा होता है! तेरी नासमझी से ही कर्म चिपके हैं।
आत्मा : टंकोत्कीर्ण स्वभाव प्रश्नकर्ता : ‘टंकोत्कीर्ण है' ऐसा आप कहते हैं, तो टंकोत्कीर्ण का मतलब क्या है?