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________________ का साम्राज्य हो तो वह ज्ञान बांझ ज्ञान कहलाएगा। परम पूज्य 'दादा भगवान' की ज्ञानवाणी संसार की हर एक मुश्किल का अत्यंत सीधा और सरल उपाय बताती है, जो कि स्वयं कार्यकारी होकर उलझनों को आसानी से सुलझा देती है। घर में, कामकाज में, नौकरी में, या कहीं भी जब ताला लग जाता है तब उसे एकाध चाबी स्वयं ही हाज़िर हो जाती है और ताला खुल जाता है ! प्रस्तुत ग्रंथ में संभव हो उतनी चाबियों का संकलन करने का प्रयास किया है। जिज्ञासुओं के लिए वह क्रियाकारी बने, उसके लिए सुज्ञ पाठक शुद्ध भाव से खुद के अंदर विराजे हुए परमात्मा से प्रार्थना करके प्रस्तुत ग्रंथ का पठन, मनन करना चाहिए कि सर्व ज्ञानकला और बोधकला उसे खुद को उपलब्ध हो, जो अवश्य फलित होगी । सामान्यरूप से ‘ज्ञानीपुरुष' के बारे में ऐसा समझा जाता है कि वे कुछ शास्त्र संबंधी विशेष जानकारी रखते हैं । यर्थाथरूप से तो ऐसों को शास्त्रज्ञानी कहते हैं। आत्मज्ञानी और शास्त्रज्ञानी में आकाश-पाताल का अंतर है। शास्त्रज्ञानी मार्ग के शोधक कहलाते हैं, जब कि आत्मज्ञानी तो आत्म मंज़िल तक पहुँच चुके होते हैं और अनेको को पहुँचाते है संपूर्ण निर्अहंकारी पद को वरेला ( प्राप्त करनेवाले) आत्मानुभवी पुरुष ही ‘ज्ञानीपुरुष' कहलाते हैं। ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' हज़ारों वर्षों में एक ही उत्पन्न होते हैं। तब उस काल में वे विश्व में बेजोड़ होते हैं । उन्हीं को अवतारी पुरुष कहते हैं। भयंकर कर्मोंवाले कलि मानवों के महापुण्य के भव्य उदय से इस काल में ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' परम पूज्य ' दादा भगवान' हमें मिले हैं ! उस पुण्य को भी धन्य है ! प्रकट परमात्मा को स्पर्श करके प्रकट हुई साक्षात सरस्वती को परोक्ष में ग्रंथ के रूप में रखना और वह भी काल, निमित्त और संयोगों के अधीन निकली हुई वाणी को, वैसे ही हर किसीके लिए हृदयस्पर्शी बनी रहे, उसके लिए संकलन करने के प्रयत्नों में यदि कोई खामी है तो वह संकलन की शक्ति की मर्यादा के कारण ही संभव हैं, जिसके लिए क्षमा प्रार्थना ! डॉ. नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद 11
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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