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________________ ६० आप्तवाणी-३ अवस्था बदलती है वैसे-वैसे देखनेवाले की अवस्था बदलती है। जैसे सिनेमा में अवस्था बदलती है, वैसे ही देखनेवाले की भी अवस्था बदलती है। ज्ञान-दर्शन तो शाश्वत गुण हैं और देखना-जानना उसका धर्म है। अनंत ज्ञेयों को जानने में परिणामित अनंती अवस्थाओं में 'शुद्ध चेतन' संपूर्ण शुद्ध है, सर्वांग शुद्ध है। अनंत द्रश्यों को देखने में परिणामित हुई अनंती अवस्थाओं में 'शुद्ध चेतन' संपूर्ण शुद्ध है, सर्वांग शुद्ध है। प्रश्नकर्ता : अनंत ज्ञेय, अनंत अवस्थाएँ और उनका अनंत ज्ञानयह तो बहुत ऊँची बात है, यह वाक्य कहीं भी सुना नहीं है। यह वाक्य ज़रा विशेष रूप से समझाइए। दादाश्री : यह वाक्य तो हम केवलज्ञान में देखकर बोलते हैं। 'ज्ञानी' की मुख से निकली हुई बातें संपूर्ण स्वतंत्र होती हैं, मौलिक होती हैं। वह कहीं से उठाया हुआ नहीं होता। उनका 'वेल्डिंग' किसी और ही प्रकार का होता है! शास्त्र के शब्द नहीं होते !! उनका एक ही वाक्य शास्त्रों के शास्त्र बना दे, ऐसा है। __ 'अनंता ज्ञेयों को जानने में परिणामित हुई अनंती अवस्थाओं में मैं संपूर्ण शुद्ध हूँ, सर्वांग शुद्ध हूँ' इतना ही यदि कोई पूरी तरह से समझ जाए तो वह संपूर्ण दशा को प्राप्त कर लेगा! अवस्थाएँ अवास्तविक हैं और मूल वस्तु वास्तविक है। हम अवस्था के जानकार हैं, और वे लोग अवस्था में उस रूप हो जाते हैं। शादी करे तो कहता है 'मैंने शादी की' और विधुर हो जाए तो कहेगा 'मैं विधुर हो गया।' वह उस अवस्थारूपी हो जाता है। विनाशी वस्तु का परिवर्तन होता है। उसमें आत्मा की ज्ञानशक्ति का परिवर्तन होता है क्योंकि अवस्थाओं को देखनेवाला' 'ज्ञान' है। जैसे-जैसे अवस्था बदलती है, वैसे-वैसे ज्ञान पर्याय बदलते हैं। पर्यायों में निरंतर परिवर्तन होता ही रहता है, फिर भी उसमें ज्ञान शुद्ध ही रहता है, संपूर्ण शुद्ध रहता है। सर्वांग शुद्ध रहता है। प्रश्नकर्ता : ज्ञान किस रूप में परिवर्तित होता है? पर्याय के रूप में?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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