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________________ आप्तवाणी-३ तू कार्य के बारे में बोलना मत, कार्य का सेवन करना मत। वह परिणाम है। लेकिन कारणों (कॉज़ेज़) का सेवन कर। कारण का सेवन नहीं किया जाए, तब तक कुछ भी नहीं हो सकता । फिर भले ही शास्त्र पढ़े, तप करे, त्याग करे या कुछ भी करे, लेकिन कुछ होगा नहीं। ५२ जो ज्ञान क्रियाकारी हो जाए, वही ज्ञान है। चालीस वर्ष से उपदेशक कह रहे हों कि ‘राग-द्वेष छोड़ो, राग-द्वेष छोड़ो' लेकिन नहीं छूट रहे हों, तभी से नहीं समझ जाना चाहिए कि यह क्रियाकारी ज्ञान नहीं है? वह किस काम का? बाकी, पारिणामिक भाव में कुछ भी करना नहीं पड़ता । क्रोधमान- माया-लोभ छोड़ने का कहते हैं, लेकिन वास्तव में वे भी तो पारिणामिक भाव हैं। परीक्षा दो तो पास हुआ जाएगा। वीतराग कितने समझदार थे ! लेकिन लोग उल्टा समझे ! लोगों ने पारिणामिक भावों को क्रियाकारी किया। चलती हुई गाड़ी को चलाते रहे और फिर खुश हुए । दादाश्री : आपके साइन्स में पारिणामिक भाव होते हैं न? प्रश्नकर्ता : साइन्स तो पूरा पारिणामिक भाव पर ही होता है I दादाश्री : पारिणामिक भाव में कुछ भी करना नहीं होता । 'एच टु' और 'ओ' का प्रमाण सेट कर दिया तो पानी अपने आप ही बनता रहता है। जब कि लोग क्या कहते हैं कि 'पानी बनाओ।' वैसे ही ये लोग 'रागद्वेष निकालो, क्रोध - मान-माया - लोभ निकालो' कहते हैं । अरे, वे क्या बूआ के बेटे हैं कि चले जाएँगे? ! व्यवहार, उपधातु परिणाम इसमें धातु और उपधातु दोनों ही हैं। और उपधातु का परिणाम व्यवहार है, उसे ही धातु परिणाम कहो तो क्या होगा? उसीसे तो अनंत जन्मों की भटकन खड़ी है । यह बॉल डाली, वह उपधातु का परिणाम है और वह फिर एक ही बार उछलकर बैठी नहीं रहती । पाँच-सात बार उछलती ही रहती है, वे भी उपधातु के ही परिणाम हैं। यानी कि धातु मिलने के बाद अर्थात् निश्चय धातु एक ही बार मिल जाए तो मोक्ष ही है। वर्ना यह सब तो उपधातु का मिलाप है । पूरा जगत् उपधातु से खड़ा है और उसे ही धातु मानता है।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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