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आप्तवाणी-३
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पुद्गल-आत्मा, स्वभाव परिणामी प्रश्नकर्ता : जीव को प्रति क्षण अपारिणामिक भाव कब उत्पन्न होते हैं?
दादाश्री : अपारिणामिक भाव अर्थात् संसारभाव और पारिणामिक भाव अर्थात् मोक्षभाव। आत्मा का पारिणामिक भाव है। पारिणामिक भाव, वह आत्मा का स्वभाव है, वह अंतिम भाव है। आत्मा का मूल स्वभाव पारिणामिक भाव है। एक मिथ्यात्व भाव है। दूसरे उपशम भाव हैं, क्षयोपशम भाव हैं, क्षायक भाव हैं, सन्निपात भाव हैं और अंतिम पारिणामिक भाव है। इन सभी में सिर्फ पारिणामिक भाव ही आत्मा का है। अन्य सभी पौद्गलिक भाव हैं। सन्निपात भी भाव है। ज्ञानी को भी सन्निपात हो जाए तब वे न जाने क्या कर दें, लेकिन उनका ज्ञान ज़रा-सा भी विचलित नहीं होता।
आत्मा स्वभाव-परिणामी है, वह खुद के स्वभाव को नहीं छोड़ता। जैसे बर्फ के ऊपर अंगारा रख दिया हो, फिर भी बर्फ खुद का स्वभाव नहीं छोड़ता।
पुद्गल परिणामी रहा है और आत्मा भी परिणामी रहा है। परिणामी स्वभाव अर्थात् प्रति क्षण पर्याय बदलनेवाला। स्वपरिणाम को आत्मचारित्र कहा है। जो पुद्गल परिणाम में तन्मयाकार नहीं होता, उसका संसार छूट गया।