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________________ आप्तवाणी-३ प्रश्नकर्ता : कई बार नहीं बोलना हो फिर भी बोल लेते हैं। फिर पछतावा होता है। दादाश्री : वाणी से जो कुछ भी बोला जाता है, उसके हम 'ज्ञातादृष्टा' हैं। लेकिन जिसे वह दुःख पहुँचाया, उसका प्रतिक्रमण 'हमें' 'बोलनेवाले' से करवाना पड़ेगा। पारिणामिक भाव छोड़ते नहीं हैं। ये तो पुद्गल के पारिणामिक भाव हैं। पेट में वायु हुई और आलू खाओ तो वायु बढ़ती है। यह भी पुद्गल का एक पारिणामिक भाव है। उसे तो प्लसमाइनस करना चाहिए। वर्ना एनोर्मल हो जाएगा। चेतन का पारिणामिक भाव, ज्ञाता-दृष्टा शुद्धात्मा के पारिणामिक भाव, वे तो ज्ञाता-दृष्टा ही है। बाहर औदयिक भावों में टेढ़ा-मेढ़ा बोल लिया, वह तो ये चंदूलाल के साथ पड़ोसी का संबंध रह गया है, इसलिए चंदूलाल से प्रतिक्रमण करवाना चाहिए। यह तो पड़ोसी भाव में नहीं रहते हैं, निकट भाव में आ जाने से ऐसा लगता है। इन पौद्गलिक परिणामों की इच्छा नहीं हो फिर भी वे आते हैं, नहीं इच्छा हो तब भी बोल निकल जाते हैं। राग-द्वेष, वे भी पारिणामिक भाव प्रश्नकर्ता : ऐसा कहा गया है कि जीव को राग-द्वेष से ही बंधन है, अतः राग-द्वेष छोड़ दे। दादाश्री : भगवान ने राग-द्वेष के लिए मना नहीं किया है, कषाय के लिए मना किया है। कषाय रहित हो जाओ', ऐसा कहा है। राग-द्वेष तो पारिणामिक भाव हैं, रिज़ल्ट हैं, वे छोड़ने से कुछ छूटेंगे नहीं। आप ऐसा कुछ ज्ञान दीजिए ताकि वह छूट जाए। पारिणामिक भाव का ख़्याल नहीं होने से दुनिया ‘राग-द्वेष छोड़ दो, रागद्वेष छोड़ दो', ऐसा कहती है। वह कोई कागज़ है कि लिखकर फाड़ दें? भगवान ने संसार का रूट कॉज़ क्या बताया है? राग-द्वेष और अज्ञान। उसमें भी मूल रूट कॉज़ क्या है? तो कहा है कि, अज्ञान। उस कारण में बदलाव हो जाए, तब फिर राग-द्वेष तो सिर्फ पारिणामिक भाव हैं। अतः वे तो चले जाएँगे।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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