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________________ ५८ आप्तवाणी-२ डिग्री, ९० डिग्री, ९५ डिग्री पर पहुँच जाता है और उसे हम जानते हैं कि ९९ डिग्री से आगे बढ़नेवाला नहीं है। क्योंकि ये थोड़े ही अंगारे हैं कि सुलग जाएँगे?! वह धीरे-धीरे वापस ठंडा हो जाता है, तपना शुरू हो तब से लेकर जब वह ठंडा हो जाए, तब तक हमें सभी को सभी अवस्थाओं को जानना है। इसलिए महात्माओं में अंतरतप रहता है। उससे चारित्र मोहनीय का निकाल हो जाता है। इस 'अक्रम मार्ग' से एकावतारी हुआ जा सके, इतनी सत्ता होती है, इसके बाद एक ही जन्म बाकी रहता है। लेकिन पंद्रह से ज़्यादा, सोलहवाँ जन्म नहीं होता है इस ज्ञान के बाद! मैं तो कहता हूँ कि दस बाकी रहे हों, फिर भी क्या हर्ज है? और वे ऐसी वैभववाले जन्म होंगे! ऐसे खराब नहीं होंगे। इस सत्संग में आए और 'ज्ञानीपुरुष' की कृपा से मोक्ष का सिक्का लग गया तो कैसे वैभववाले जन्म होंगे! और यह जन्म भी वैभव में बीतेगा। ऐसा यह 'अक्रम मार्ग' है। एक संसार मार्ग और एक अध्यात्म मार्ग - दो ही मार्ग हैं। संसार मार्ग में डॉक्टर का वकील से नहीं पूछ सकते और वकील का डॉक्टर से नहीं पूछ सकते। और यहाँ तो अध्यात्म मार्ग है, इसलिए हमारे पास सभी कुछ पूछा जा सकता है। यहाँ जो पूछना हो वह पूछा जा सकता है और सारे ही स्पष्टीकरण-खुलासे मिलें, वैसा है। आपको कहना है कि, 'हम आपके पास आए हैं और आपके पास जो है, वह हमें नहीं मिले तो उसका अर्थ क्या?' संसार से निस्पृह होकर जो एक मात्र सच्चा ढूँढने निकले हों, उन्हें यहाँ पर हमारे पास से सबकुछ मिले ऐसा है! 'माँगो, जो माँगो वह दूं ऐसा है यहाँ पर। लेकिन आपको माँगना भी नहीं आता। ऐसा माँगना कि जो कभी भी आपके पास से जाए नहीं। परमानेन्ट वस्तु माँगना। टेम्परेरी माँगोगे तो वह कहाँ तक पहुँचेगा? ऐसा कुछ माँगो कि जिससे आपको शाश्वत शांति हो जाए, चिंता-उपाधि से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाए। यहाँ तो मोक्ष मिलता है। यहाँ बुद्धि का उपयोग नहीं करोगे तो 'यह' प्राप्त करोगे। हमारा सत्संग दसदस सालों से चल रहा है। उसमें वाद होता है लेकिन विवाद नहीं होता। यही एक स्थल है कि जहाँ बुद्धि काम नहीं करती।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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