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________________ अक्रममार्ग : ग्यारहवाँ आश्चर्य! बारहवाँ गुणस्थानक कहलाता है? क्योंकि शुक्लध्यान उत्पन्न हुआ है ! शुद्धात्मा का लक्ष्य बैठ गया है! शुद्धात्मा का लक्ष्य बैठना और प्रतीति बैठनी, उसे शुक्लध्यान कहा जाता है। क्रमिक मार्ग' में प्रतीति के जाले बनते हैं और थोड़ी प्रतीति बैठती है। प्रतीति बैठे और जब वह पूर्ण हो जाए तब क्षायक समकित होता है और तब 'शुद्धात्मा' का लक्ष्य बैठता है, जबकि इस अक्रम मार्ग में तो पहले लक्ष्य बैठा देते हैं और उसके बाद प्रतीति तो रहती ही है! यह 'अक्रम मार्ग' है न, इसीलिए लक्ष्य पहले बैठ जाता है। 'क्रमिक मार्ग' में तो जिसे प्रतीति बैठी हुई हो, उसे भी शुक्लध्यान नहीं रहता। क्योंकि इस काल में 'क्रमिक मार्ग' में कोई सातवें गुणस्थानक से आगे नहीं जा सकता। ____ 'अक्रम मार्ग में 'ज्ञानीपुरुष क्षायक समकित का तंत डाल देते हैं, इसलिए उन कषायों का तंत नहीं रहता। 'यह' (समकित का) तंत हो तो वह (कषायों का) नहीं रहता और वह तंत हो तो 'यह' नहीं रहता! 'क्रमिक मार्ग' में पहले गाढ़ समकित, शुद्ध समकित होता है और उसके बाद दो भाग पड़ जाते हैं। दर्शन मोहनीय बंद हो जाता है और फिर व्यवसाय आदि सब रहता है। वह चारित्र मोहनीय रहता है। उस चारित्र मोहनीय को खपाता रहता है। लेकिन अभी तो ये लोग क्या करते हैं? दर्शन मोहनीय निकाले बिना चारित्र मोहनीय को मारकर निकालना चाहते हैं, वह किस तरह जाए? अपने यहाँ पर 'अक्रम मार्ग' में चारित्र मोहनीय का निकाल करते हैं। हम 'ज्ञान' देते हैं, तब दर्शन मोहनीय उड़ा देते हैं और चारित्र मोहनीय को नीरस कर देते हैं और उससे नया रस उत्पन्न नहीं होता और नया दर्शन मोह रहता ही नहीं। रस उत्पन्न होता है इसीलिए तो दर्शन मोहनीय खड़ा है, नीरसता की वजह से चार्ज बंद होता है। 'क्रमिक'वालों को चारित्र मोहनीय नीरस करना पड़ता है। इसीलिए तो भारी तप-त्याग करने पड़ते हैं। उससे चारित्र मोहनीय नीरस हो जाता है। क्रमिक'वालों को उसके लिए बाह्य तप करने पड़ते हैं। जबकि अपने यहाँ 'अक्रम' में आंतरिक तप होता है। उससे हृदय तपकर ८० डिग्री, ८५
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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