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________________ अक्रममार्ग : ग्यारहवाँ आश्चर्य! ५९ यह 'अक्रम मार्ग' है इसलिए खुल्लम खुल्ला होता है, सभी बातों का तुरंत स्पष्टीकरण मिल जाता है। जबकि 'क्रमिक मार्ग' में कैसा होता है? यह ज़री-कसब बुनते हैं न, तो उसमें एक मन रूई में से बुने हुए सूत में एक तोला सोना पिरोते हैं। वैसे ही जो महावीर भगवान ने कहा, वह सभी गौतम स्वामी सूत्रों में पिरोते रहे। लेकिन इस काल के लोग एक मन सूत में से एक तोला 'सोना' कैसे निकाल सकेंगे? ऐसी किसी की बिसात ही नहीं है न! 'हमने' तो यह सीधा 'सोना' ही दिया है। 'हमने' अज्ञान से केवलज्ञान तक के सभी स्पष्टीकरण दे दिए हैं। चार्ज किस तरह होता है? डिस्चार्ज किस तरह होता है? यह सारा, जगत् किस तरह चलता है? कौन चलाता है? आप कौन हो? ये सब कौन हैं? इन सभी का स्पष्टीकरण हम यहाँ पर देते हैं। 'यह' श्रुतज्ञान कैसा कहलाता है? अपूर्व! पूर्व में जो नहीं सुना था, वैसा अपूर्व! क्या यह श्रुतज्ञान वीतरागों का नहीं है? वही है। वीतराग जिस स्टेशन पर ले जाते थे, उसी स्टेशन पर 'यह' भी ले जाता है। लेकिन रास्ता निराला है! वह रास्ता 'क्रमिक' और यह 'अक्रम'। यह तो काम निकाल लेने की जगह है। 'यह' किसी धर्म का स्थल नहीं है। खुद का सभी प्रकार का काम हो जाता है। जहाँ पर मोक्ष हाथ में आ जाए, वहाँ पर काम पूर्ण होता है। जहाँ सर्व समाधानकारी ज्ञान है कि जो किसी भी संयोगों में, किसी भी स्थिति में समाधान देता है। समाधान होना ही चाहिए। यदि यह ज्ञान समाधान नहीं करवाए तो उसका अर्थ यह है कि आपको समाधान करना आता नहीं है। नहीं तो समाधान अवश्य होना ही चाहिए। हमारी आज्ञा में रहे तो समाधान होता ही है। यहाँ निपुणता, अनिपुणता देखी नहीं जाती। निपुणतावालों को निपुणता की खुमारी रहती है। पंडितों को पंडिताई की खुमारी रहती है, त्यागी को त्याग की खुमारी रहती है, तपस्वी को तप की खुमारी रहती है, वही तो बड़ा रोग, महारोग है! वह महारोगी दूसरों का रोग निकालने जाए तो दूसरों का रोग जाएगा कैसे? यह डायरेक्ट वीतरागों की बात है। यहाँ एक भी शब्द इनडायरेक्ट नहीं है! चौबीसों तीर्थंकरों की बात यहाँ होती है। ये उपदेश सर्वकाल का अनुसरण करके निकलते हैं, यानी कि यह चौबीसों तीर्थंकरों का संयुक्त उपदेश है ! साधु
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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