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________________ आप्तवाणी - २ I तू अच्छी आदतों को रखने का प्रयत्न करेगा और बुरी आदतों को निकालता रहेगा। लेकिन वे अच्छी और बुरी आदतें उनके खुद के आधार पर नहीं खड़ी हैं, अतः उनके आधार को अगर निकाल दिया जाए तो वे अच्छी और बुरी आदतें अपने आप झड़कर गिर जाएँगी।' इस जगत् के लोग अच्छी आदतों को आधार देते रहते हैं और बुरी आदतों को निकालते रहते हैं, यानी कि आधार तो रहा ही । और जब तक आधार रहे तब तक संसार है। और इस संसार में तो अनंत चीजें हैं। अगर वह 'खुद' नहीं हटेगा तो एक-एक चीज़ को कब तक हटाता रहेगा? लेकिन आधार गया तो सबकुछ गया। घर में बारह व्यक्तियों में से कमानेवाला मर जाए तो लोग कहेंगे कि हमारा आधार गया। इस 'निश्चय' में भी ऐसा ही है। इस संसार में एक-एक बाल का लुंचन करें, तब भी कुछ हो सके ऐसा नहीं है। अनंत चीजें हैं। तो इसके बजाय तो तू ही खिसक जान ! फिर सिर पर बाल हों या गंजा हो, फिर भी उसमें क्या हर्ज है? ५४ इस 'अक्रम मार्ग' में पहले अज्ञान को निराधार किया जाता है । इसलिए मैं कहाँ आपको कुछ छोड़ने का कहता हूँ? 'क्रमिक' में ‘ज्ञानीपुरुष' सारी ज़िंदगी में दो शिष्यों से त्याग करवा सकते हैं! और साथसाथ उसे खुद को भी त्याग करना पड़ता है। नयी सीढ़ी ग्रहण करना होता है और पुरानी का त्याग करना होता है । और यहाँ अक्रम में तो आत्मा ग्रहण करना था, सो हो गया और अहंकार और ममता का त्याग हो गया। और काम हो गया! न तो केश लुंचन या न ही तप-त्याग या उपवास ! 'क्रमिक मार्ग' में वह खुद तप का आधार बनता है ! और उसमें 'मैं' और 'शुद्धात्मा' अलग होते हैं । किसीने उनके शास्त्र के पन्ने फाड़ दिए हों तो उन्हें अंदर खेद हो जाता है कि 'इसने मेरी किताबें फाड़ डालीं !' बाहर तो, सबके सामने (ज़ाहिर में) तो ज्ञानी हों, वैसा पद रखते हैं लेकिन अंदर 'मैं-पन' सूक्ष्म रूप से बरतता रहता है । उनमें 'मैं' और 'शुद्धात्मा' अलग रहते हैं। उन्हें ठेठ तक 'मैं' रहता है । वह ' क्रमिक मार्ग क्या है? अहंकार को शुद्ध करो। विभाविक अहंकार है, उसे शुद्ध करना होता है उन्हें। खुद मुक्त ही है, लेकिन उसे भान नहीं हो पाता। यह तो रोंग
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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