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________________ अक्रममार्ग : ग्यारहवाँ आश्चर्य ! I लोभ रहते ही नहीं और फिर भी जो 'असर हुआ,' ऐसा मालूम पड़ता है वह क्रोध नहीं है, वह तो प्रकृति की उग्रता का गुण है । उसमें आत्मा एकाकार हो, ‘तन्मयाकार हो जाए तो वह क्रोध कहलाता है । दोनों मिल जाएँ उसके बाद सुलगता है । और 'हमने' आपको जो आत्मा दिया है वह अलग ही रहता है। इसलिए उग्रता का तूफ़ान आदि सब होता है, लेकिन तंत नहीं रहता। जिसमें तंत नहीं रहे, उसे क्रोध नहीं कहा जाता । ५३ लोभ, वह परमाणुओं का आकर्षण और विकर्षण का गुण है, प्रकृति का आकर्षण और विकर्षण का गुण है । उसमें आत्मा एकाकार हो जाए तो राग-द्वेष हैं और यदि आत्मा एकाकार नहीं हो तो लेना नहीं और देना भी नहीं! अपने शरीर में इलेक्ट्रिकल बॉडी है, इसलिए लोहचुंबकत्व रहता है और इसलिए लोहचुंबकत्व के कारण यह देह खिंचती है। उसे वह कहता है, ‘मैं खिंचा!' तेरी इच्छा नहीं फिर भी तू क्यों खिंच जाता है? 'हम' स्वरूप का ज्ञान दें, उसके बाद फिर क्रोध - मान-माया - लोभ रहते ही नहीं हैं। लेकिन आपको यहाँ पर उन्हें पहचान लेना पड़ेगा ! क्योंकि जो निर्मल आत्मा आपको दिया है, वह कभी भी तन्मयाकार नहीं होता है। फिर भी खुद को समझ नहीं आने से खुद का व्यक्तित्व छोड़ने से, थोड़ी दख़ल होने से बखेड़ा खड़ा हो जाता है । 'जगह' छोड़ने से ही बखेड़ा होता है। “खुद का स्थान नहीं छोड़ना चाहिए । 'खुद का स्थान' छोड़ने से नुकसान कितना है? कि 'खुद का सुख" रुक जाता है और बखेड़े जैसा लगता है। लेकिन ‘हमारा' दिया हुआ आत्मा, ज़रा सा भी इधर-उधर नहीं होता, वह तो वैसे का वैसा ही रहता है, प्रतीति के रूप में! यह 'ज्ञान' देने के बाद ताँता गया, तंत गया। तंत को ही क्रोधमान-माया-लोभ कहते हैं । जिसका तंत गया उसका क्रोध- - मान-माया-लोभ सबकुछ गया! क्योंकि हम उसका आधार ही निकाल देते हैं । इसलिए वे सभी निराधार हो जाते हैं । भगवान क्या कहते हैं कि, 'जगत् किस आधार पर खड़ा है?' अज्ञान के आधार पर जगत् खड़ा है । क्रियाएँ अच्छी हैं या बुरी? तो भगवान कहते हैं कि, 'क्रियाएँ अच्छी भी नहीं हैं और बुरी भी नही हैं। लेकिन अज्ञान यदि निकल जाए तो बाकी का सब भी गिर जाएगा।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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