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________________ अक्रममार्ग : ग्यारहवाँ आश्चर्य! ५५ बिलीफ़ और रोंग ज्ञान है और इसलिए रोंग वर्तन होता है। राइट ज्ञानदर्शन खुद अपने आप नहीं हो सकता और उसमें भी यह रोंग बिलीफ़ तो किसी भी प्रकार से टूटती नहीं है। उसके लिए तो साइन्टिस्ट चाहिए, 'ज्ञानीपुरुष' चाहिए और वह भी फिर संपूर्ण 'ज्ञानीपुरुष' होने चाहिए तभी अपना काम हो सकता है। वीतराग भगवान ने, जिसे शोर्ट मार्ग चाहिए उसे शोर्ट मार्ग बताया और जिसे लोंग मार्ग चाहिए, उसे लोंग मार्ग बताया है और जिसे देवगति चाहिए, उसे वह मार्ग बताया है। मोक्ष का मार्ग तो खिचड़ी बनाने से भी अधिक आसान है। जो कठिन हो, कष्टसाध्य हो तो वह मोक्ष का मार्ग ही नहीं है, अन्य मार्ग है। ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ, तभी मोक्ष का मार्ग आसान और सरल हो जाता है। खिचड़ी बनाने से भी आसान हो जाता है। करोड़ों योजन लंबा, करोड़ों जन्मों में भी प्राप्त नहीं हो, ऐसा मोक्ष मार्ग एकदम शोर्टकट रूप में प्रकट हुआ है! यह 'ज्ञान' तो, उन्हीं वीतरागों का है, सर्वज्ञों का है। मात्र तरीक़ा ही 'अक्रम' है। दृष्टि ही पूरी बदल जाती है। घंटेभर में ही आत्मा का लक्ष्य बैठ जाता है। नहीं तो क्रमिक मार्ग में कोई ठेठ तक लक्ष्य प्राप्त नहीं करता है। आत्मा का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लोगों ने कैसे-कैसे पुरुषार्थ किए हैं! एक क्षण के लिए भी आत्मा का लक्ष्य प्राप्त हो जाए, उसके लिए लोगों ने भयंकर तप किए थे। 'क्रमिक मार्ग' के ज्ञानियों को 'शुद्धात्मा' का लक्ष्य अंत तक नहीं बैठता, लेकिन जागृति बहुत रहती है। जबकि आप सब को अभी यहाँ पर कितना सरल हो गया है कि आपको घंटेभर में आत्मा दिया, उसके बाद कभी भी चूकते नहीं हैं और निरंतर आत्मा लक्ष्य में ही रहता है। 'रात को दो बजे नींद में से उठते हो, तब माँ जी आपको सबसे पहले कौन सी चीज़ याद आती है?' प्रश्नकर्ता : 'मैं शुद्धात्मा हूँ,' यही याद आता है। दादाश्री : नहीं तो लोगों को तो इस जगत् की कोई भी सबसे प्रिय चीज़ हो, वही पहले याद आती है लेकिन आपको तो 'शुद्धात्मा' ही पहले याद आता है। अलख का कभी भी लक्ष्य नहीं बैठता है। इसीलिए
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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