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________________ ३६२ आप्तवाणी-२ चाहिए, वर्ना यदि भीतर ही माफ़ी माँग लें, तब भी हिसाब साफ हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण से क्या सामनेवाले का मन पूरा बदल जाता है? दादाश्री : यदि बाहर के किसी अनजान व्यक्ति के प्रतिक्रमण करोगे तो वह आश्चर्यचकित हो जाएगा! उसे तुरंत ही आपके प्रति खिंचाव हो जाएगा! इस प्रतिक्रमण से तो सामनेवाले की वृत्ति ठंडी पड़ जाती है, जबकि घर के लोगों के तो निरंतर प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। प्रश्नकर्ता : मृत व्यक्ति की स्मृति आए तो क्या उस मृत व्यक्ति का भी प्रतिक्रमण करना पड़ेगा? दादाश्री : स्मृति तो मृत व्यक्ति की भी आती है और जीवित की भी आती है। जिसकी स्मृति आए उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा, क्योंकि हम जानते हैं कि असल में 'वह' जीवित ही है, मरता नहीं है, यह उसकी आत्मा के लिए भी हितकर है और हम प्रतिक्रमण करते हैं तो हम भी उसके बंधन में से छूट सकते हैं। प्रश्नकर्ता : मृत व्यक्तियों का प्रतिक्रमण कैसे करना चाहिए? दादाश्री : मन-वचन-काया, भावकर्म-द्रव्यकर्म-नोकर्म मरे हुए व्यक्ति का नाम तथा उसके नाम की सर्व माया से भिन्न, ऐसे उसके शुद्धात्मा को याद करना, और फिर ‘ऐसी-ऐसी भूलें की हैं,' उन्हें याद करना (आलोचना), उन भूलों के लिए मुझे पश्चाताप हो रहा है और उसके लिए मुझे क्षमा करो (प्रतिक्रमण), वैसी भूलें नहीं होंगी ऐसा दृढ़ निश्चय करता हूँ' ऐसा नक्की करना है (प्रत्याख्यान)। 'हम' खुद 'चंदूलाल' के ज्ञातादृष्टा रहकर उसे जानें कि, चंदूलाल ने कितने प्रतिक्रमण किए, कितने सुंदर और कितनी बार किए! जहाँ निरंतर प्रतिक्रमण होते हैं, वहाँ आत्मा शुद्ध ही होता है। हम लोग तो दूसरों में शुद्धात्मा देखें, प्रतिक्रमण करें और खुद के शुद्धात्मा तो
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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