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________________ आप्तवाणी-२ प्रश्नकर्ता : इन सब में - अंत:करण में मुख्य चित्त ही है न? चित्त ही सभी का लीडर है न? चित्त ही सभी को खींच लाता है न? चित्त को काबू में करने की ज़रूरत है या मन को? ये लोग चित्त को भूलकर मन के पीछे क्यों पड़े हैं? ३३६ I दादाश्री : आपकी बात सच है । ज्ञानियों ने भी चित्त को ही महत्व दिया है, लेकिन लोगों को तो चित्त का और मन का भान ही नहीं है न ! इन्होंने तो चित्त को और मन को एक कर दिया है । चित्त ठिकाने पर नहीं रहता और मन पेम्फलेट दिखाता है, लेकिन भान नहीं है कि कौन सा चित्त है और कौन सा मन है ? सत्संग में चित्त हिलता नहीं है । चित्त तो रिलेटिव आत्मा है ! चित्त ठिकाने पर रहे तो पूरा रिलेटिव आत्मा स्थिर हो जाता है और 'दादा' ने तो आपको रियल आत्मा दिया है ! यह रियल आत्मा और रिलेटिव आत्मा दोनों आमने-सामने स्थिर बैठ जाएँ, तब फिर आपको मोक्ष ही बरतेगा न! इसीलिए तो सत्संग में बैठना है न! नहीं तो कितने ही बगीचे हैं, लेकिन सत्संग में बैठने से चित्त स्थिर रहता है और आत्मा स्थिर रहता है। यह तो संघबल है न? संघ के बिना तो कुछ भी नहीं हो पाता । संघबल चाहिए और जहाँ संघबल होता हैं, वहाँ पर मतभेद नहीं होता । इसलिए भगवान महावीर बहुत सारे व्यक्तियों का संघ करते थे। लोग जितने अधिक बढ़ते हैं उतना संघ बढ़ता है और उतना ही अधिक आत्मा स्थिर होता है। यदि तीन व्यक्ति हों तो उतना संघबल और अधिक व्यक्ति हों तो संघबल अधिक । 'इस' सत्संग के एक घंटे की तो बहुत ग़ज़ब की क़ीमत है ! चित्त को ठिकाने रखने के लिए मंदिर में घंटा लगाए ! भगवान को आंगी किसलिए? श्रृंगार किसलिए? सुगंधित द्रव्य रखे, वे किसलिए? चित्त ठिकाने पर रहे, इसलिए । घंटा बजे तब बाहर का हो - हो, शोर-शराबा सुनाई नहीं देता, लेकिन अभी तो अगर घंट बज रहा हो तब भी ये अक़्लवाले भगवान के दर्शन करते समय, साथ में अंदर चप्पल की भी फोटो खींच लेते हैं! अरे व्यवस्थित को तो देख न ! उसका होगा तो ले जाएगा और
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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