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________________ चित्त ३३५ देखती है। जब देह की भूख नहीं होती तब मन की भूख खड़ी होती है, दोनों नहीं हों तो वाणी की भूख खड़ी होती है। ये बोलते हैं न कि, 'उसे तो मैं कहे बगैर रहूँगा ही नहीं।' वही वाणी की भूख ! जब घर पर खाना खा रहे हों, तब अगर भिखारी जाए तो बड़े-बूढे कहते हैं, 'अरे, ध्यान रखना, नज़र न लग जाए।' यह नज़र लगना यानी क्या? कि जिसकी भूख लगे उसमें चित्त चिपकता है, वह। इस स्त्री को किसी पुरुष की भूख हो तो उसका चित्त किसी पुरुष में चिपक जाता है और पुरुष को स्त्री की भूख हो तो उसका चित्त स्त्री में चिपक जाता है। इस तरह नज़र लगने से ही तो सारा बिगड़ा है! छोटे बच्चे अगर सुंदर हों तो घर के लोग उसके चेहरे पर और कपाल पर काली बिंदी लगा देते हैं, ताकि किसी की नज़र न लगे। जो भूखे होंगे उनका चित्त तो चिपकेगा न? वे काली बिंदी इसलिए लगाते हैं ताकि उसकी नज़र काली बिंदी पर ही केन्द्रित हो जाए। सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' को ही नज़र नहीं लगती, कोई नज़र गड़ाए, तब भी 'ज्ञानीपुरुष' उनमें तुरंत शुद्धात्मा ही देखते हैं। यह तो सारी टेलिपथी जैसी मशीनरी हैं, उसमें यदि आत्मा एकाकार हो जाए तो सब बिगड़ जाता है। यदि चित्त की निर्मलता अच्छी हो, तो एक बार पढ़ने से ही याद रह जाता है। पढ़ाई का हेतु तो चित्त की निर्मलता ही है। चित्तशुद्धि ही महत्व की यदि चित्त की हाज़िरी में पढ़ा हो, तभी वह याद रहता है। मैं बचपन में चित्त की गैरहाज़िरी में पढ़ता था, इसलिए फेल हो जाता था? ना, फेल नहीं हुआ, लेकिन बेवकूफ कहलाया। ऐसे तो मैं ब्रिलियन्ट था। अध्यापक से कहा हुआ था, 'मास्टर साहब, ये पंद्रह साल इस एक भाषा को में सीखने में निकाले, लेकिन यदि पंद्रह साल भगवान ढूँढने में निकाले होते, तो ज़रूर भगवान प्राप्त करके बैठा होता!' ये तो मेरे जिंदगी के अमूल्य साल सिर्फ एक भाषा सीखने में कि जो एक छोटा बच्चा भी जानता है, वह सीखने के पीछे निकाल दिए। लेकिन अध्यापक ऐसा समझते नहीं हैं न?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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