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________________ चित्त ३३७ ले जाएगा तो एक बार ले जाएगा, हमेशा तो नहीं ले जाएगा न? तो ले जाने दे न ! हिसाब चुक जाएगा! संसार रोग है, जितने समय तक रोग को भूल जाएँ, उतना रोग मिट जाता है ऐसा नियम है। यह तो जितनी बार चित्त जाता है उतनी बार रोग बढ़ता जाता है। इस जगत् को विस्मृत करने का साधन ही कहीं पर नहीं है न! केवल 'ज्ञानीपुरुष' ही जगत् विस्मृत करने का साधन हैं। रात को शुद्ध चित्त को जो पकड़ाएँ वही सारी रात चलता है और नींद भी आती है। हमें ऐसा बहुत बार होता है कि रात को विधि शुरू करते हैं तब बीच में कभी आँख लग जाती है तो फिर वापस आँख खुले तो जहाँ से बाकी थी वहीं से विधि शुरू हो जाती है। और यदि फिर से आँख लग जाए, तो फिर से वैसा ही होता है। तो सुबह विधि पूरी होती है। इस तरह सारी रात शुद्ध चित्त को जो भी पकड़ाएँ, वह सुबह तक चलता है। चित्त के चमत्कार प्रश्नकर्ता : पूजा करते समय मुझे एकाध क्षण तक बिजली चमकती है, वह क्या आत्मओजस है? दादाश्री : वह लाइट तो चित्त का चमत्कार है। उसमें श्रद्धा बैठ जाए, तो वह स्थिरता लाता है। आत्मा की लाइट की कल्पना भी की नहीं जा सकती, ऐसी है। मुझे कोई कहे कि, 'मुझे महावीर भगवान दिखते हैं।' तो मैं कहूँगा कि, 'यह तो बाहर देखी हुई मूर्ति है, वही दिखती है, लेकिन वह तो दृश्य है, उस दृश्य के दृष्टा को खोज! दृष्टि को दृष्टा में रख और ज्ञान को ज्ञाता में रख, तब जाकर काम होगा।' प्रश्नकर्ता : अनाहद् नाद का क्या अर्थ है? दादाश्री : इस शरीर में जहाँ कहीं भी स्पंदन होते हैं, वहाँ पर चित्त एकाग्र हो जाता है। कुंडलिनी में भी वैसा ही करते हैं। उससे भी मोक्ष नहीं होता। ऐसे
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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