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________________ ३३४ आप्तवाणी-२ कहलाता है, और स्पष्ट टेबल दिखे वह ज्ञान कहलाता है। उसे चित्त देखकर आता है। जब सामान्य भाव से दिखे तब चित्त दर्शनरूपी कहलाता है। जब विशेषभाव से दिखे, विस्तारपूर्वक दिखे, वह चित्त ज्ञानरूपी कहलाता है। जिसका निदिध्यासन करे, उसी रूप हो जाता है। कोई ग्रेज्युएट हो और यदि वह खेत में जाकर बैल ही चलाए तो बैल जैसा हो जाता है, क्योंकि उसी का निदिध्यासन होता है। इसलिए जिसके संग में आया और उसका निदिध्यासन हो, तो उस रूप हो जाता है। चित्त तो चैतन्य का अंश भाग है, वह तो चैतन्य का किल्लोल भाग है। चिपकता है चित्त ही प्रश्नकर्ता : चित्त की शक्ति क्या मन से अधिक होती है? दादाश्री : मन इस शरीर से बाहर नहीं जा सकता। चित्त तो बाहर निकलता है और इस शरीर के अंदर भी काम करता है। पीछे कंधा दुःख रहा हो तब वहाँ भी जाता है और जहाँ भेजना हो वहाँ पर भी जाता है। पैर पर मच्छर काटें तो भले ही काटें, चित्त को वहाँ से खींच लें तो परेशानी नहीं होगी और हिसाब होगा तभी काटेगा न? चित्त का स्वभाव कैसा है कि जिस जगह पर से उसे खींच लें तो उस जगह का ध्यान नहीं रहता। यह आत्मा तो सभी ओर रहता है, लेकिन चित्त खींच लें तो फोन हेड ऑफिस में नहीं भेजता। यह तो अगर चित्त वहाँ पर रहे, तभी फोन हेड ऑफिस में आता है और फिर डी.एस.पी. को भेजता है। हाथ पर जहाँ मच्छर ने काटा हो, वहाँ पर जाता है ! ये दो लाख रुपये आए वे भी मच्छर हैं और दो लाख गए वे भी मच्छर हैं! किसी व्यक्ति को बहुत भूख लगी हो, तो क्या वह कपड़े की दुकान के सामने देखेगा? ना, वह तो मिठाई की दुकान के सामने ही देखेगा। भूखा व्यक्ति बाहर निकले तो पकौड़ियाँ देखता है। जिसे साड़ी की भूख हो, वह जब बाहर निकलती है तो जहाँ-तहाँ दुकानों में लटकी हुई साड़ियाँ
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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