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________________ मन ३०९ दादाश्री : तो क्या वैष्णव धर्म गलत होगा? नहीं? क्या कृष्ण भगवान गलत होंगे? प्रश्नकर्ता : नहीं, भूल अपनी.... दादाश्री : क्या भूल होगी? प्रश्नकर्ता : वह तो आपको मालूम है दादा। दादाश्री : आपका नाम क्या है? प्रश्नकर्ता : चंदूलाल। दादाश्री : रोज़ तो जेब में पाँच-पच्चीस हों तो मुंबई के बाज़ार में मन स्थिर रहता है और दस-बीस हज़ार हों तो? मन स्थिर नहीं रहता? वह तो स्थिर रहे ऐसा है, लेकिन उसे हम बिगाड़ते हैं। रोज़-रोज़ बेटे को बिगाड़ें और उसे कहें कि स्थिर हो जा तो वह नहीं हो पाएगा, उसी तरह अगर मन को बिगाड़ने के बाद स्थिरता माँगें तो स्थिर रह पाएगा? मन को तो पान या बीड़ी बस इतना ही है, लेकिन ये तो बिगाड़ते हैं। रेडियो लो, फ्रिज़ लो और वह टेलिविज़न भी लो। मन को बिगाड़ने के बाद, वह सीधा नहीं हो सकेगा। बाकी सब को बिगाड़ना, लेकिन मन को मत बिगाड़ना। पत्नी को बिगाड़ दिया होगा तो ज्ञानी उसे एक घंटे में सीधा कर देंगे। अगर पत्नी बिफर जाए और दूसरे रूम में भेज दें, तो बारह घंटे अलग रह सकते हैं, लेकिन मन तो रात-दिन साथ में ही रहता है। बिगाड़ा हुआ मन रास्ते पर नहीं आता, लेकिन ज्ञानी मिल जाएँ और ज्ञान दे दें तो बिगाड़ा हुआ मन रास्ते पर आ जाता है। प्रश्नकर्ता : इसके लिए दस साल तक मेहनत की है। दादाश्री : तो क्या पिछले जन्म में नहीं की थी? अनंत जन्मों से यही किया है। मन क्या है? इसे जानना तो पड़ेगा न! इसके माँ-बाप कौन हैं? उसका घर कहाँ है? उसके जन्मदाता कौन हैं? उसका विलय किस तरह होता है? यह सब भी जानना तो पड़ेगा न! यह मन किसने रखा? प्रश्नकर्ता : प्रभु ने।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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