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________________ आप्तवाणी-२ I दादाश्री : किसलिए? दुःख के लिए या सुख के लिए? भगवान ने किसलिए ऐसा किया? सभी को अरंडी का तेल चुपड़ने के लिए किया होगा? भगवान इसमें हाथ ही नहीं डालते, इस प्रोडक्शन में भगवान हाथ नहीं डालते। वह तो 'बट नैचुरल' (कुदरती ) है । और भगवान यह बात अंदर बैठे सुनते हैं और हँसते भी हैं कि, 'चंदूलाल, यह क्या पागलपन कर रहा है!' हम लोग समसरण मार्ग में हैं न! समसरण मार्ग मतलब निरंतर परिवर्तन होता रहता है, वह । उसमें अंतिम स्टेशन मन है। अभी आपका यह स्टेशन है न वह अगले जन्म का मन बनेगा । वह तो 'ज्ञानीपुरुष' जानते हैं कि मन क्या है? मन किस तरह ठिकाने पर आएगा? मन ठिकाने पर रखने के लिए आप खुद प्रयत्न नहीं करते? प्रश्नकर्ता : वे प्रयत्न तो रोज़ करता हूँ । दादाश्री : आप करते हो या चंदूलाल करते हैं? कंट्रोल के लिए प्रयत्न आप खुद नहीं करते, वह तो चंदूलाल करता है । आप खुद कंट्रोल करो तो कंट्रोल हो सकेगा, लेकिन आप 'खुद कौन हो' यह निश्चित करना ही पड़ेगा न? यह निश्चित हो जाए तो काम हो गया। अभी माइन्ड कैसा है? ठीक है न? ३१० मन तो मोक्ष की नाव प्रश्नकर्ता : अभी तो अपार शांति है । दादाश्री : मन तो नाव है । मन तो मोक्ष में ले जाता है और संसार में भटकाता भी है, क्योंकि अभी तक कुतुबनुमा ( दिशासूचक यंत्र ) नहीं मिला है। मोक्ष में कब ले जाता है ? 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ तो यह नाव मोक्षमार्ग की तरफ चलती है 'ज्ञानीपुरुष' की उपस्थिति में आपका मन ऐसा रहता है तो उनका मन कितना सुंदर होगा ! उनका मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, सभी सुंदर होते हैं। उनका अहंकार होता है, लेकिन वह भी सुंदर होता है, लेकिन पागल नहीं होता, अहंकार भी मनोहर होता है । एक व्यक्ति में इतनी शक्तियाँ हैं, तो औरों में कितनी होगी ! उतनी ही हैं, लेकिन प्रकट नहीं हुई हैं। प्रकट कब होंगी? कोई तरणतारण 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ तब ।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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