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________________ अनुक्रमणिका ms २३. १०३ जगत् स्वरूप १ प्रकृति की विभाविकता ७५ पाचन क्रिया में कितनी... २ प्रकृति : स्वभाव से छुईमुई ७६ जगत् का क्रियेटर कौन? ३ प्रकृति पलटे समझ से ७७ विश्व पज़ल का एकमेव... ४. सहज प्राकृत शक्ति देवियाँ ८४ बह्मा, विष्णु और महेश ४ माताजी यमराज नहीं, नियमराज ५ सरस्वती • जगत् की अधिकरण क्रिया ६ लक्ष्मी जी • धर्म स्वरूप __ कलिकाल की लक्ष्मी • रियल धर्म : रिलेटिव... १० १९४२ के बाद की लक्ष्मी ९१ पुरुष हुए बिना पुरुषार्थ... १३ लक्ष्मी जी का स्वभाव जो कैफ़ चढ़ाए, वह... १३ लक्ष्मी जी का जावन पक्ष में पड़े हुओं का मोक्ष १५ लक्ष्मी जी का आवन । संसार स्वरूप : वैराग्य... १९ ज्ञानी-सस्पृह, निस्पृह शुद्धात्मा ही सच्चा सगा 'नो लॉ' - लॉ यह तो मोह या मार? नियमों में विवेक १०६ सब सबकी सँभालो धर्मध्यान देवों को भी दुःख? ध्यान, वही पुरुषार्थ कलियुग के रेगिस्तान में... आर्तध्यान - रौद्रध्यान धर्मध्यान के चार स्तंभ ११३ संसरण मार्ग चिंता, वही आर्तध्यान ११६ बोझा सिर पर या घोड़े... निमित्त को काट खाना ११८ • संसारवृक्ष कर्म निर्झरे प्रतिक्रमण से ११९ • सत्देव : सद्गुरु : सत्धर्म ३८ चार प्रकार के ध्यान १२३ मूर्तिधर्म : अमूर्तधर्म हार्ड रौद्रध्यान १२७ जिनमुद्रा संसार का उपादान कारण १२८ प्रतिमा में प्राण डालें ज्ञानी ४८ रौद्रध्यान किसे कहते हैं? १२८ • अक्रममार्ग : ग्यारहवाँ... ५० आर्तध्यान किसे कहते हैं? १२९ प्रकृति ६५ धर्मध्यान किसे कहते हैं? १३४ सहज प्रकृति - सहज... ६८ 'कलुषित भाव' के '..... १३५ घर-प्रकृतियों का बगीचा ६९. निज दोष १४० प्रकृति भी भगवान स्वरूप ७३ भूल का रक्षण १४१ १०९ १०९ ११० 33
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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