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________________ प्रत्यक्ष हों, वहाँ किसी शास्त्र की या क्रिया की ज़रूरत नहीं है। वहाँ तो आज्ञा, वही धर्म और आज्ञा, वही तप है। भगवान महावीर ने कहा है न कि, 'आणाए धम्मो, आणाए तप्पो।' । भगवान ने ऐसा भी कहा है कि, 'पच्चीस सौ साल पूरे होने के बाद भस्मक ग्रह का असर समाप्त हो जाएगा और फिर से यथार्थ वीतराग धर्म उदय में आएगा,' और वे पच्चीस सौ साल आज पूरे हो रहे हैं। 'ज्ञानीपुरुष' जहाँ प्रकट हुए हैं, वहाँ अब वीतराग धर्म को क्या आँच आनेवाली है? खुद संपूर्ण निष्पक्षपाती हो जाए, खुद अपने आप के लिए भी निष्पक्षपाती हो जाए, तब मोक्ष सामने आता है! - रमणता दो प्रकार की : एक पौद्गलिक और दूसरी आत्म। जिसे एक परमाणु मात्र में भी पौद्गलिक रमणता नहीं हो, उसे आत्म रमणता प्राप्त होगी ही। जब तक किंचित् मात्र भी पौद्गलिक रमणता रहती है, तब तक आत्मा प्राप्त नहीं हो सकता। मनुष्य जन्म लेता है, तब से लेकर मरने तक पौदगलिक रमणता में ही रहता है। अरे! शास्त्र पढे, माला फेरे, सामायिक, प्रतिक्रमण करे या व्याख्यान करे, वे सभी पौद्गलिक रमणता हैं। स्व में रमणता हो, तभी मोक्ष प्राप्त होगा! जिसे स्व-रमणता उत्पन्न हो चुकी हो, वह सर्व परिग्रहों के संग में होने के बावजूद संपूर्ण अपरिग्रहीअसंग है! और जिसे स्व-रमणता प्राप्त नहीं हुई है, उसने सर्व परिग्रहों के संग का त्याग किया हो, फिर भी वह संपूर्ण परिग्रही है, क्योंकि रमणता किसमें है? तब कहे, पुद्गल में ही। 'इस प्रकृति का पारायण पूरा हुआ तो हो गया वीतराग!' – दादाश्री - डॉ. नीरूबहन अमीन 32
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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