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________________ २७४ आप्तवाणी-२ और लोगों को दुःख पहुँचे ऐसे कार्य का त्याग करना, लेकिन मोक्ष चाहिए तो शुद्ध उपयोग में ही रहना। अपनी ज़रूरत के मुताबिक ही चीजें रखना, उसे त्याग कहते हैं। चार कमीज़ों की ज़रूरत हो और बारह नहीं रखें तो उसे त्याग कहते हैं। जो निबाह लेते हैं, उन्हें त्यागी कहते हैं। त्याग तो कौन कर सकता है? जिनके साथ 'ज्ञानीपुरुष' के आशीर्वाद हों, वे ही त्याग कर सकते हैं, उनके सिवा कोई कुछ भी त्याग करने जाए, तो उसका उसे कैफ़ चढ़ता जाता है। त्यागीलिंग और गृहस्थीलिंग ऐसे दो लिंग कहे गए हैं, जब त्यागीलिंग में कैफ़ बढ़ जाता है, तब गृहस्थलिंग में (ज्ञान) प्रकाश हो जाता है और गृहस्थलिंग में कैफ़ बढ़ जाए, तब त्यागीलिंग में प्रकाश बढ़ जाता है। भगवान ने क्या कहा है कि, 'किसी भी दशा में वीतराग हो सकते हैं, चाहे किसी भी लिंग में वीतराग हो सकते हैं। अरे! स्त्री भी संपूर्ण वीतराग हो सकती है, केवल मनुष्यत्व होना चाहिए, यह किसी लिंग या दशा विशेष का हक़ नहीं है।' मोक्ष के लिए त्याग करने की ज़रूरत नहीं है, त्याग तो बरतना चाहिए। फिर अन्य किसी त्याग की ज़रूरत नहीं है, दूसरा त्याग तो भ्रांति की भाषा का त्याग है। भगवान का त्याग शुद्ध भाषा का त्याग था। यह भ्रांति की भाषा का त्याग क्या है? बीड़ी पीनेवाला समझता है कि मैंने बीड़ी का त्याग किया और प्रतिज्ञा करवानेवाला समझता है कि मैंने उससे त्याग करवाया। इस भ्रांति के त्याग को तो छोटा बच्चा भी समझता है कि आज से चाचा ने बीड़ी छोड़ दी है। यह तो कैसा त्याग? एक स्थानकवासी सेठ थे। उन्होंने मुझसे कहा कि, 'आप रोज़ घूमने निकलते हैं तब घंटा-आधा घंटा आना, हम साथ में बैठेंगे।' सेठ अच्छे आदमी थे। इसलिए हम पाव घंटा, आधा घंटा उनके साथ बैठते थे। एक दिन सेठ ने इतनी बड़ी (बारह इंच की) बीड़ी खुद बनाई। रोज़ तो इतनी छोटी बीड़ी होती थी, लेकिन एक दिन इतना बड़ा बीड़ा
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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