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________________ त्याग २७३ वह तो निरा अहंकार ही कहलाता है। ऐसे त्याग से तो निरा कैफ़ चढ़ता है। त्याग का जो कैफ़ चढ़ता है, वह तो अत्यधिक सूक्ष्म कैफ़ है। वह कैफ़ तो अत्यंत कष्ट से भी नहीं उतरता, तो फिर मोक्ष तो कब होगा? निष्कैफ़ी का मोक्ष होता है, कैफ़ी का नहीं। इससे अच्छा तो शराबी का स्थूल कैफ़ अच्छा है कि पानी छिड़कें तो तुरंत ही उतर जाता है। लोग त्याग-वैराग्य करके भी भटकते रहते हैं, इस तरह से मोक्ष मिलना आसान नहीं है। त्याग तो उसे कहते हैं कि मोह उत्पन्न ही नहीं हो। ये त्यागी तो त्याग करने के मोह में ही रहते हैं, उसे त्याग कहा ही कैसे जाए? त्याग तो शूरवीरता का काम है। त्याग तो सहज ही बरतता है, करना नहीं पड़ता। त्याग-अत्याग की मूर्छा संपूर्ण रूप से उड़ जाए, वही खरा त्याग है। तादात्म्य अध्यास, वही राग है और तादात्म्य अध्यास नहीं है, वह त्याग है। प्रचलित भाषा में कहे जानेवाले त्याग को त्याग कहते ज़रूर है, लेकिन वह अंतरंग त्याग के हेतु के रूप में है, फिर भी असल त्याग नहीं है। एक साधु रोज़ गाते थे : 'त्याग टिके नहीं वैराग्य बिना।' तो मैंने उनसे पूछा कि, 'महाराज, लेकिन वैराग्य किसके बिना नहीं टिकता?' तब महाराज ने कहा, 'वह तो पता नहीं।' तब मैंने उनसे कहा, 'विचार के बिना वैराग्य नहीं टिकता।' यह तो क्रमिक मार्ग की बात हुई। क्रमिक मार्ग तो बहुत कठिन है, अनंत जन्मों से 'चूल्हे में से भट्ठी में और भट्ठी में से चूल्हे में जाने का सिलसिला बना हुआ है।' मात्र त्याग से ही आत्मा नहीं मिल जाता, त्याग तो कष्ट साध्य है। यदि त्याग से मोक्ष मिल जाता तो मोक्ष भी कष्ट साध्य होता। भगवान ने तो मोक्ष को सहज साध्य कहा है। क्रमिक मार्ग में भी यदि त्याग करो तो वह, क्रोध-मान-माया-लोभ निवृत्त करने के लिए हो, तभी करना। जिस त्याग से क्रोध-मान-मायालोभ बढ़ें, वह त्याग नहीं हो सकता। भगवान ने क्या कहा है कि, 'शुद्ध उपयोग में ही रहो।' फिर भी यदि संसार का लोभ हो, भौतिक सुख चाहिए तो जो लोगों को पसंद नहीं, वैसा मत करना और लोगों को सुख उपजे ऐसा करना, वैसा ग्रहण करना
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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