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________________ त्याग २७५ बनाकर पीने लगे। तब मैंने सेठ से कहा, 'क्यों इतना बड़ा बीड़ा पी रहे हो?' तब सेठने कहा, 'महाराज ने मुझे ऐसा कहा है कि रोज़ की चार ही बीड़ियाँ पीना।' मैंने कहा कि, 'महाराज मुझसे नहीं रहा जाएगा।' तब महाराज ने मुझसे कहा कि, 'ना, आपको हमारी आज्ञा का पालन करना ही पड़ेगा।' 'हं... इसलिए आप इस आज्ञा का पालन कर रहे हो ? ( !) ' वह देखकर मुझे आश्चर्य हुआ कि धन्य है इस काल को (!) थोड़ी देर हुई तो जो बीड़ी पी रहे थे वह आधी हो गई | उन सेठ ने फिर क्या किया कि दो पत्ते लेकर नीचे से चढ़ाने लगे ! मैंने कहा, 'सेठ, यह क्या कर रहे हो?' तब सेठने कहा, 'चार से पूरा नहीं पड़ता इसलिए।' धन्य है यह! ऐसा तो भगवान महावीर भी नहीं जानते थे! भगवान महावीर को जो ज्ञान केवलज्ञान में भी नहीं आया, वह ज्ञान आपको है ! धन्य है, धन्य है ! ऐसा मन भी होता होगा, ऐसा तो मैंने आज ही जाना। धन्य है आपकी वैश्यबुद्धि को ! नहीं तो चार बीड़ियाँ ही पीऊँगा, ऐसा बोले मतलब बोले-बस, नहीं तो नहीं बोलते, महाराज से साफ-साफ कह देना चाहिए था कि मुझसे आपकी आज्ञा का पालन नहीं किया जा सकेगा । और बोले यानी क्षत्रिय ! फिर देखो न इतने बड़े पटाखे बनाए ! और ऊपर से उस मोटे बीड़े को देखकर लगा कि बनिये तो ऐसे ही होते हैं, लेकिन जब नीचे से दो पत्ते डालने लगे तब मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसा ज्ञान तो भगवान महावीर को भी केवलज्ञान में नहीं आया था, जैसा ज्ञान आपको है! आप तो कैसे हो? अब आश्चर्य नहीं होगा मुझे? और फिर मुझे नाश्ता करवाया ! ऐसे लोग हैं ! बहुत तरह के लोग मैंने देखे हैं, लेकिन भगवान के केवलज्ञान में भी नहीं आया होगा, वैसा तो मैंने इन सेठ के वहीं पर देखा ! कहना पड़ेगा सेठ! वे सेठ अभी तक भी याद आते हैं! फिर सेठ मुझसे क्या कहने लगे कि, ‘आपकी समताधारी बात सुनते हैं, तब हमें ऐसा होता है कि अंबालालभाई के पास ही बैठे रहें ।' धन्य है इस सेठ को, धन्य है उन महाराज को भी! फिर सेठ मुझसे कहने लगे कि, 'महाराज मेरे पीछे हाथ
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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