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________________ आप्तवाणी-२ उसकी यह दशा हुई! ‘इसलिए अब शांत हो जा । जैसा तुझे ज्ञान हुआ है, तू वैसा ही शुद्धात्मा है'। चंडकोशिया भान में आ गया, पूर्वजन्म का उसे ज्ञान हो आया। पिछले जन्म में साधुपन था । उसने शिष्य पर क्रोध किया था, कैसा भयंकर क्रोध ? ऐसा-वैसा नहीं । ये लोग पत्नियों पर करते हैं वैसा नहीं। शिष्य तो फँस गया फिर क्या गुरु उसे छोड़ देता? फिर उस फँसे हुए को गुरु मारता ही रहता ! उसके बाद साँप वहीं पर छटपटाकर मर गया। उसके ऊपर खूब चींटियाँ चढ़ गई थी, क्योंकि छटपटाया इसलिए खून निकला और खून निकला तब चींटियाँ चढ़ने लगीं और फिर चींटियाँ खींचातानी करने लगीं ! चंडकोशिया को अत्यंत जलन होने लगी। लेकिन उसने शांति से तप किया और वह अच्छी गति में पहुँच गया । २६० भगवान वहाँ से अनार्य, अनाड़ी देश में विचरे । वहाँ पर लोगों ने उन्हें, ‘अरे, साधु आया है, इसे पत्थर मारो, यह कैसा साधु है? कपड़ेवपड़े नहीं पहनता। मारो इसे ।' तो भगवान को तो अंदर घुसने से पहले ही प्रसाद मिलने लगा ! भगवान तो जानते थे कि, 'मैं कहाँ प्रसाद खा रहा हूँ?' तो उन्हें तो, ‘वास्तव में प्रसाद' मिलने लगा । किसी जगह पर कोई दयालु व्यक्ति हो तो वह रोटी का टुकड़ा दे देता था। आर्यदेश में तो मिठाइयाँ मिलती थीं, वे यहाँ कहाँ से लाते? भगवान ने कुछ काल अनाड़ी देश में बिताकर, जब कर्म क्षय हो गए तब वापस लौटे। अभी तो सब को घर बैठे ही अनाड़ी देश है, तो भी लोग झंझट करते हैं ! अरे, महावीर भगवान को साठ मील चलकर जाना पड़ा था न ? आप तो कितने पुण्यशाली हो कि आपके लिए घर बैठे ही अनाड़ी देश है। घर में घुसते ही अनाड़ी देश । जहाँ खाना खाएँ वहीं पर, खाते-पीते हैं वहीं पर अनाड़ी देश होता है। अब यहाँ पर तप में तपना है। भगवान को तप ढूँढने के लिए साठ मील विचरना पड़ा था, अनाड़ी देश ढूँढने के लिए! जबकि आज तो घर बैठे ही लोगों को अनाड़ीपन नहीं लगता? तो मुफ्त का तप मिला है तो शांति से सहन कर लो न ! इस काल के लोग भी कितने पुण्यशाली हैं! इसे प्राप्त तप कहते हैं। अड़ोसी पड़ोसी, पार्टनर, भाई, पत्नी, बच्चे, सभी तप करवाते हैं, ऐसा है ! पहले के काल में तो घर में ही अनुकूलता
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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