SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तप २५९ कर्म के उदय बाकी हैं, ' उसका उन्हें खुद को पता चल जाता था । जैसे कि किसी को वॉमिट (उल्टी) होनेवाली हो तो उसे उसका पता चल जाता है, उसी तरह अगर बहुत समय बाद कर्म की वॉमिट होनेवाली हो तो, ज्ञानियों को वह भी पता चल जाता है। ऐसे कर्मों की ज्ञानी उद्दीरणा (भविष्य में फल देनेवाले कर्मों को समय से पहले जगाकर वर्तमान में खपाना) करते हैं, मनुष्य में उद्दीरणा की सत्ता है । इसलिए महावीर भगवान ने सोचा कि, 'लाओ, आर्य देश में से अनार्य देश में जाऊँ तो मेरे ये कर्म झड़ जाएँगे। कर्म का हिसाब है।' आर्यदेश के लोग तो 'पधारो, पधारो' करते थे और भगवान पर पुष्प बरसाते थे, इसलिए भगवान को हुआ कि अनार्यदेश में जाऊँ। अब अनार्यदेश साठ मील दूर था, तो मुख्य सड़क पर से जाने को नहीं मिला। पूरे गाँव के लोग साथ में बिदा करने आए थे। लोगों ने भगवान से विनती की कि, 'भगवान, आप इस सकड़े रास्ते पर से मत जाइए। उस रास्ते पर चंडकोशिया नाग रहता है, वह नाग इस जंगल में किसी को भी प्रवेश ही नहीं करने देता, जो जाता है उसे जीवित नहीं निकलने देता। भगवान, वह आप पर उपसर्ग करेगा।' लेकिन भगवान ने कहा कि, 'आप सब मना कर रहे हो, लेकिन मुझे तो यहीं से होकर जाने की ज़रूरत है। मुझे मेरे ज्ञान में ऐसा दिख रहा है। मैं आग्रही नहीं हूँ, लेकिन मेरे ज्ञान में दिख रहा है इसलिए आप सब शांतिपूर्वक रहो और मुझे जाने दो।' तब गाँव के सभी लोग वहीं खड़े रहे। कोई जंगल में घुसा ही नहीं न ! चंडकोशिया का नाम जाने, तब फिर कौन जाए ? 'भगवान को जाना हो तो जाएँ,' कहेंगे! चंडकोशिया की बात आई तब तो भगवान - वगवान सब छोड़ देंगे! छोड़ देंगे या नहीं छोड़ देंगे ये लोग? भगवान तो जंगल के रास्ते से गए। वहाँ चंडकोशिया को सुगंध आई, तो फिर वह बिफरता ही न? वह तो किसी जानवर को भी जंगल में नहीं आने देता था, वह बिफरता हुआ भगवान के सामने आया और भगवान के पैर में डंक मार दिया । डंक मारते ही थोड़ा खून उसके मुँह में आ गया। खून मुँह में जाते ही उसे पिछले जन्म का भान हुआ । तब भगवान ने वहाँ उसे उपदेश दिया, ' हे चंडकोशिया ! बूझ-बूझ ! क्रोध को शांत कर ।' पिछले जन्म में चंडकोशिया साधु था और शिष्य पर क्रोध किया इसलिए
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy