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________________ संयोग विज्ञान उसे चाय पिलाता है । इसके पीछे रूट कॉज़ क्या है ? 'यह अच्छा और यह खराब है' ऐसा कहते हैं, वह ? ना, लेकिन वह मिथ्यात्व दृष्टि है, इसलिए ऐसा करता है। मिथ्यात्व दृष्टि के कारण सही क्या और गलत क्या उसका भान ही नहीं है। २४९ आत्मा और संयोग दो ही हैं और उसमें संयोग अनंत हैं, संयोग आत्मा को अपने साथ मिला लेते हैं। वह किस तरह, यह आपको मैं समझाता हूँ। जैसे कि एक हीरा है जो सफेद उजाला देता है, प्रकाश में उसमें से सफेद किरणें निकलती हैं। अब उसके नीचे लाल कपड़ा रखा हो तो पूरा हीरा लाल दिखता है । और हरा कपड़ा रखा हो तो हीरा हरा दिखता है । और प्रकाश भी हरा निकलता है । आत्मा भी ऐसा ही है, लेकिन जैसे संयोग आते हैं वैसा हो जाता है । क्रोध आए तब गरम-गरम हो जाता है। वास्तव में तो शुद्धात्मा खुद तो कभी भी बिगड़ा ही नहीं है । तेल और पानी को मिलाकर चाहे जितना हिलाएँ, फिर भी तेल और पानी कभी भी एक नहीं होते हैं। उसी प्रकार आत्मा भी कभी बिगड़ा ही नहीं। अनंत जन्मों में आत्मा कटा नहीं है, कुचला नहीं गया है, साँप में गया या बिल्ली में गया या भले ही किसी भी योनि में गया लेकिन खुद अंश मात्र भी नहीं बिगड़ा है, सिर्फ अलग-अलग अकार बनाने की मेहनत बेकार गई है। T I कुछ लोगों को दिन में अनुकूल आता है और रात को अनुकूल नहीं आता। लेकिन ये दोनों संयोग रिलेटिव हैं। रात है तो दिन की क़ीमत है और दिन है तो रात की क़ीमत है ! वीतराग भगवान क्या कहते हैं कि, 'ये सभी संयोग ही हैं, और दूसरा, आत्मा है, उसके सिवा तीसरा कुछ भी नहीं ।' उनके लिए सही-गलत, अच्छाबुरा कुछ भी नहीं होता । 'व्यवस्थित' क्या कहता है कि, 'इन संयोगों में तो किसी का किंचित् मात्र भी नहीं चल सकता, सारा पिछले खाते का हिसाब मात्र ही है।' वीतरागों ने क्या कहा है कि सारे संयोग एक समान ही हैं । देने आया या लेने आया, सभी एक ही हैं, लेकिन यहाँ पर बुद्धि दख़ल करती है। संयोगों के मात्र ज्ञाता - दृष्टा ही रहने जैसा है । फिर ये संयोग वियोगी स्वभाव के हैं। इकट्ठे होने के संयोग खत्म हो जाएँ तब बिखर जाते हैं। तब जो
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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