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________________ २४८ आप्तवाणी-२ काँच दिये हों तो वह काँच रख लेता है और बाप हीरा ले लेता है, क्योंकि बाप बुद्धि से हीरा लेता है। बुद्धि से तो संसारफल मिले, ऐसा है। वास्तव में संसार में बुद्धि का उपयोग हिताहित के लिए ही होना चाहिए। नौकरी में कहाँ-कहाँ जमा करना है, कहाँ-कहाँ उधार करना, सेठ का उलाहना नहीं मिले, वैसा करना है, यह भोजन की थाली में कोई जीवजंतु गिर गया हो तो उसे निकालना है, ऐसा बुद्धि बताती है। इतने तक ही बुद्धि का उपयोग होना चाहिए, और वह भी ज़रूरत पड़े तब बुद्धि की लाइट सहज रूप से हो ही जाती है और सांसारिक काम हो जाते हैं। लेकिन यह तो रात-दिन बुद्धि की दख़ल होती रहती हो तो क्या हो? हमें कोई कहे कि, 'दादा, आप में अक़्ल नहीं है।' और कोई दूसरा कहे कि, 'दादा तो 'ज्ञानीपुरुष' हैं।' तब हमें वे दोनों संयोग एक समान ही लगते हैं। हम तो 'अबुध' हैं। इसलिए वे दोनों संयोग हमें एक समान लगते हैं, जबकि बुद्धि क्या कहती है? 'दादा तो ज्ञानीपुरुष हैं,' वह संयोग अच्छा लगता है, और 'दादा में अक़्ल नहीं है वह अच्छा नहीं लगता। इसलिए हम तो पहले से ही अबुध बन गए हैं। यह तो संयोग मात्र है। तो कभी बोलेगा कि, 'दादा ज्ञानी हैं और कभी बोलेगा कि, 'दादा में अक्ल नहीं है।' और फिर वह भी है 'व्यवस्थित'! 'व्यवस्थित' तुझे किसी भी संयोग में से छोडेगा नहीं। उसमें बुद्धि का उपयोग करेगा तो पसंद और नापसंद दोनों की मार लगे बिना रहेगी ही नहीं। इसलिए भले ही बोले, 'हमें क्या है?' ऐसा कोई बोले तब हमें कहना चाहिए कि, “बोलो रिकॉर्ड 'हम' आपको सुन रहे हैं!" यह बोलते हैं वह तो रिकॉर्ड किया हुआ है, वह किसी भी प्रकार से बदल नहीं सकता। मूल खुद मालिक नहीं बोलता है, यह तो टेप हो चुका है वह रिकॉर्ड बोलता है, वह बदलेगा नहीं। लोगों को जो नहीं भाता वह पसंद नहीं है और जो भाता है वह पसंद है, लेकिन एक ही चीज़ है, दोनों संयोग ही हैं। लेकिन यह तो एक को अनुकूल - ईष्ट संयोग और दूसरे को प्रतिकूल - अनिष्ट संयोग रखा, फिर कोई अनिष्ट संयोग आ जाए तो कहेगा, 'यह कहाँ चाय पीने आ गया?' और ईष्ट संयोग आ जाए तब उसे नहीं पीनी हो, फिर भी जबरन
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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