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________________ आप्तवाणी-२ बजाय तो समकित प्राप्त हो ऐसी कोई व्यवस्था कर न, तो उसमें सभी आ जाएगा। धर्मध्यान में मुख्य पुरुषार्थ ही वहाँ पर करना है कि आर्तध्यान और रौद्रध्यान नहीं हों । आर्तध्यान और रौद्रध्यान नहीं हों तो फिर बाकी क्या रहा? धर्मध्यान ही । शुक्लध्यान तो है नहीं, इसलिए धर्मध्यान यदि प्राप्त करना हो तो आर्तध्यान को और रौद्रध्यान को हटाओ । धर्मध्यान किसे कहते हैं? कोई गालियाँ दे रहा हो तो आपको गाली देनेवाले का दोष नहीं दिखे। आपका ज्ञान ऐसा हो कि कोई गाली दे रहा है फिर भी उसका दोष नहीं दिखे, और 'मेरे ही कर्मों के उदय का दोष है' ऐसा भान रहे । इसे ही भगवान ने धर्मध्यान कहा है । ११४ घर में सास झगड़ रही हो तो हमें समझना चाहिए कि यह सास मेरे ही हिस्से में क्यों आई? दूसरी सासें नहीं थीं क्या? लेकिन मुझे यही क्यों मिली? अर्थात् उसके साथ अपना कुछ हिसाब है, तो वह हिसाब शांतभाव से पूरा कर लो। धर्मध्यान रहा नहीं। इस काल में धर्मध्यान समझते ही नहीं । समझते तो भी कल्याण हो जाता ! प्रश्नकर्ता : अहंकार का ज़ोर अधिक होता है, क्या इसलिए धर्मध्यान भूल जाते हैं ? दादाश्री : समझ किसे कहते हैं कि समझ से वैसा ही प्रवर्तन हो जाए। जब तक प्रवर्तन में नहीं आए, तब तक समझ में आया नहीं है, ऐसा कहना चाहिए। समझ का फल तुरंत ही प्रवर्तन में आना, वह है । प्रवर्तन में आना ही चाहिए। हम छोटे बच्चे से कहें कि ये दो शीशियाँ रखी हैं, दोनों एक सी ही हैं और दोनों में दवाइयाँ हैं, दोनों में व्हाइट पाउडर है एक पर लिखा हो अमृत और दूसरी पर लिखा हो पोइज़न, तो बच्चे को हमें समझाना चाहिए कि इसमें से कुछ खा मत जाना । हम अमृत की दवाई मुँह में डाल रहे हों, तो बच्चा भी यदि नहीं जानता हो कि इसमें से कौन सा अमृत है और कौन सा ज़हर है तो वह भूल से पोइज़न खा लेगा। इसलिए हमें बच्चे को बताना चाहिए कि इसमें पोइजन है । सिर्फ पोइज़न
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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