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________________ धर्मध्यान ११३ इस काल में होता ही नहीं। फिर भी, किसी को यदि शुक्लध्यान चाहिए, चिंता हमेशा के लिए बंद करनी हो तो हमारे पास सत्संग में आ जाना। हम एक घंटे में ही आपको शुक्लध्यान दे देंगे। 'ज्ञानीपुरुष' क्या नहीं कर सकते? 'ज्ञानीपुरुष' चाहें सो करें, लेकिन हम किसी चीज़ के कर्ता नहीं होते हैं, हम निमित्तभाव में ही होते हैं निरंतर। यदि शुक्लध्यान प्राप्त नहीं होता तो इस काल में तो धर्मध्यान में रहें तब भी काफी है। आज तो खरा धर्मध्यान भी लुप्त हो गया है। धर्मध्यान को समझते ही नहीं कि धर्मध्यान किसे कहते हैं? धर्मध्यान तो, जितने समय तक किया उतना समय! एक घंटा तो एक घंटा, लेकिन तब आनंद भरपूर रहता है और उस आनंद के प्रतिस्पंदन अगले दो-तीन घंटों तक रहते हैं। धर्मध्यान नहीं समझते तो फिर करें क्या? पूरे दिन रौद्रध्यान और आर्तध्यान, रौद्रध्यान और आर्तध्यान ! पूरे दिन किच-किच! भगवान ने कहा था कि धर्मध्यान में रहना। धर्मध्यान के चार स्तंभ प्रश्नकर्ता : भगवान ने किसे धर्मध्यान कहा था? दादाश्री : भगवान ने, 'आज्ञा वही धर्म और आज्ञा वही तप'। ऐसा कहा था। भगवान ने धर्मध्यान के चार आधारस्तंभ बताए हैं। भगवान की आज्ञा सच ही है, ऐसा मानने लगे तो वह धर्मध्यान के पहले स्तंभ अर्थात् 'आज्ञाविचय' में आ गया। दूसरा स्तंभ यानी कि उसे क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं हों, ऐसा रहे यानी 'अपाय-विचय' में आ गया। सामनेवाले ने पत्थर मारा, वह मेरे खुद के ही कर्म का उदय है वैसा रहे, तब तीसरे स्तंभ यानी कि 'विपाक-विचय' में आया कहलाया और चौथा स्तंभ यानी 'संस्थान-विचय,' अर्थात जो चार लोक हैं, उनकी हकीकत समझ जाए तो धर्मध्यान पूरा हो जाए। अब भगवान की आज्ञा सच्ची है, वह तो सभी कबूल करते ही हैं। 'संस्थान-विचय' बहुत गहनता से समझ में नहीं आएगा तो चलेगा। उसके
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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